"खारवेल": अवतरणों में अंतर
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{{Infobox royalty
|title = कलिंगाधिपती
|
| reign = c. पहली या दूसरी सदी BCE
▲| succession = [[कलिंग|कलिंग]] के राजा
| predecessor = संभवतः वृद्धराजा (a.k.a. वुधराजा)
| successor = संभवतः वक्रदेवा (a.k.a. वाकादेपा)
▲|religion = [[जैन धर्म]]
▲|dynasty = [[महामेघवाहन वंश|महामेघवाहन राजवंश]]
}}
'''खारवेल''' (193 ईसापूर्व) [[कलिंग]] (वर्तमान [[ओडिशा]]) में राज करने वाले [[महामेघवाहन वंश]] का तृतीय एवं सबसे महान तथा प्रख्यात [[सम्राट्|सम्राट]] थे। खारवेल के बारे में सबसे महत्वपूर्ण जानकारी [[हाथीगुम्फा शिलालेख|हाथीगुम्फा]] में चट्टान पर खुदी हुई सत्रह पंक्तियों वाला प्रसिद्ध [[अभिलेख|शिलालेख]] है। हाथीगुम्फा, [[भुवनेश्वर]] के निकट [[उदयगिरि]] पहाड़ियों में है। इस शिलालेख के अनुसार वे [[जैन धर्म]] का अनुयायी थे।उन्होंने जैन समणो की एक विराट् सभा का भी आयोजन किया था, ऐसा उक्त प्रशस्ति से प्रकट होता है।
उनके समय के संबंध में मतभेद है। उ प्रशस्ति शिलालेख में जो संकेत उपलब्ध हैं उनके आधार पर कुछ विद्वान् उनका समय ईसा पूर्व दूसरी शती में मानते हैं और कुछ उन्हें ईसा पूर्व की प्रथम शती में रखते हैं। किंतु खारवेल को ईसा पूर्व पहली शताब्दी के उत्तरार्ध में रखनेवाले विद्वानों की संख्या बढ़ रहीं है।
== परिचय ==
[[File:Hathigumpha.JPG|thumb]]
[[मौर्य राजवंश|मौर्य साम्राज्य]] की
[[चित्र:Hathigumpha inscription.JPG|right|thumb|300px|हाथीगुफा के अभिलेख]]
उसे १० वर्ष की आयु में युवराज पद प्राप्त हुआ था तथा २४ वर्ष की अवस्था में वह महाराज पद पर आसीन हुआ। राज्यभार ग्रहण करने के दूसरे ही वर्ष सातकर्णि की उपेक्षा कर अपनी सेना दक्षिण विजय के लिए भेजी और मूषिक राज्य को जीत लिया। चौथे वर्ष पश्चिम दिशा की ओर उसकी सेना गई और भोजको ने उसकी अधीनता स्वीकर की, सातवें वर्ष उसने [[राजसूय|राजसूय यज्ञ]] किया। उसने [[मगध महाजनपद|मगध]] पर भी चढ़ाई की। उस समय मगध नरेश वृहस्पति मित्र था। इस अभियान में वह उस जिनमूर्ति को उठाकर वापस ले गया जिसे नंदराज अपने कलिंग विजय के समय ले आया था।
खारवेल, [[महामेघवाहन वंश|चेदि
15 वर्ष की आयु तक खारवेल ने राजोचित विद्याएँ सीखीं। 16वें वर्ष में वह युवराज
खारवेल जैन था। उसने और उसकी रानी ने जैन भिक्षुओं के निर्वाह के लिए व्यवस्था की और उनके आवास के लिए गुफाओं का निर्माण कराया। किंतु वह धर्म के विषय में संकुचित दृष्टिकोण का नहीं था। उसने अन्य सभी देवताओं के मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया। वह सभी संप्रदायों का समान आदर करता था।
खारवेल का प्रजा के हित का सदैव ध्यान रहता था और उसके लिए वह व्यय की चिंता नहीं करता था। उसने नगर और गाँवों की प्रजा का प्रिय बनने के लिए उन्हें करमुक्त भी किया था। पहले नंदराज द्वारा बनवाई गई एक नहर की लंबाई उसने बढ़वाई थी। उसे स्वयं [[संगीत]] में अभिरुचि थी और जनता के मनोरंजन के लिये वह [[नृत्य]] और सगीत के समारोहों का भी आयोजन करता था। खारवेल को भवननिर्माण में भी रुचि थी। उसने एक भव्य 'महाविजय-प्रासाद' नामक राजभवन भी बनवाया था।
खारवेल के पश्चात्
=== पूर्वज ===
हाथीगुमफा के अभिलेखों के अनुसार
ललक
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