जीप घोटाला
१९४८ का जीप घोटाला भारत गणराज्य में भ्रष्टाचार का पहला बड़ा मामला था।[1] यूनाइटेड किंगडम में भारतीय उच्चायुक्त वी के कृष्ण मेनन ने प्रोटोकॉल की अनदेखी की और एक विदेशी फर्म के साथ सेना की जीपों को खरीदने के लिए ₹८० लाख के अनुबंध पर हस्ताक्षर किए।[2]
खरीदना
संपादित करें१९४७-४८ के भारत-पाकिस्तान युद्ध के साथ भारतीय सेना को पाकिस्तानी सेना के खिलाफ और अधिक जीपों की आवश्यकता थी। ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त वी के कृष्ण मेनन ने नई जीपों की समान कीमत के लिए २,००० नवीनीकृत जीपों के लिए एक आदेश दिया जो संयुक्त राज्य या कनाडा से खरीदी जा सकती थीं। उन्होंने तर्क दिया कि उन्हें पुर्जे अलग से तुरंत पहुँचाए जाएंगे। जिस कंपनी को जीपों की डिलीवरी के लिए सौंपा गया, जो कि अल्पज्ञात एंटी-मिस्टेंट्स थी, उसकी पूंजी केवल £६०५ थी। कृष्णा मेनन बिना किसी निरीक्षण प्रमाण पत्र के कुल भुगतान का ६५% के साथ $१,७२,००० का भुगतान देने के लिए सहमत हुए। इसके साथ उन्होंने केवल १०% जीपों का ही निरीक्षण होने दिया। पहले के अनुबंध में यह निर्धारित किया गया था कि भुगतान का ६५% निरीक्षण पर किया जाएगा, २०% डिलीवरी पर किया जाएगा, और बाकी डिलीवरी के एक महीने बाद किया जाएगा। आने वाली १५५ जीपों में से किसी को भी सेना में उपयोग किए जाने लायक नहीं थी। रक्षा मंत्रालय ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार कर दिया, और एंटी-मिस्टेंट्स ने जीपों की डिलीवरी को निलंबित कर दिया। एंटी-मिस्टेंट्स से संपर्क नहीं कर पाने के कारण मेनन ने १,००७ जीपों के लिए एससीके एजेंसियों के साथ एक समझौता किया, जिसमें से ६८ को हर महीने डिलिवर किया गया और भारत सरकार को पुराने अनुबंध से हुए नुकसान की भरपाई करनी पड़ी। प्रत्येक जीप की कीमत £४५८.१० थी, जबकि एंटी-मिस्टेंट्स ने एक जीप को £३०० में बेचा था। मेनन अनुबंध को बदलने के लिए सहमत हुए, जिसके अनुसार छह महीने के लिए हर महीने १२ जीपों की डिलीवरी की जाएगी और फिर १२० जीपों की हर महीने डिलीवरी की जाएगी। हालांकि कंपनी ने दो साल में केवल ४९ जीपों की डेलीवेरी की और सरकार को मुआवजा देने से इनकार कर दिया।[3] ब्रिटेन द्वारा जीपों का भुगतान द्वितीय विश्व युद्ध से पहले भारत पर ब्रिटिश युद्ध के कर्ज का हिस्सा था।[4]
भ्रष्टाचार के आरोप
संपादित करेंमेनन ने जीप की खरीद के लिए विदेशी फर्म को प्रोटोकॉल का दरकिनार करते हुए ₹८० लाख के सौदे पर हस्ताक्षर किए।[5][6] जबकि अधिकांश पैसे का अग्रिम भुगतान किया गया था, केवल 155 जीपों की डिलीवरी की गई थी; प्रधान मंत्री नेहरू ने सरकार को उन्हें स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।[7] गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पंत और भारत सरकार ने ३० सितंबर १९५५ को घोषणा की कि जीप कांड का मामला न्यायिक जांच के लिए बंद कर दिया गया है और अनंतसयनम अय्यंगार के नेतृत्व वाली जांच समिति के सुझाव को नजरअंदाज कर दिया गया है।[8] उन्होंने घोषणा की, "जहाँ तक सरकार का सवाल है, उसने मामले को बंद करने का मन बना लिया है। यदि विपक्ष संतुष्ट नहीं है तो वे इसे चुनावी मुद्दा बना सकते हैं।" इसके तुरंत बाद ३ फरवरी १९५६ को मेनन को बिना पोर्टफोलियो के मंत्री के रूप में नेहरू कैबिनेट में शामिल किया गया।[9][10] बाद में मेनन भारत के रक्षामंत्री के रूप में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विश्वसनीय सहयोगी बन गए। हालांकि श्री मेनन की व्यक्तिगत सत्यनिष्ठा पर संदेह करने का कोई सबूत नहीं था।[11]
महात्मा गांधी के निजी सचिव यूवी कल्याणम ने एक अखबार के साक्षात्कार[12] में कहा, "यहाँ यह उल्लेख करना उचित है कि नेहरू ने कृष्ण मेनन जैसे भ्रष्ट सहयोगियों को बनाया, जो रक्षामंत्री होने के दौरान कुख्यात 'जीप घोटाले' में शामिल थे"।
संदर्भ
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- ↑ "On Your Marks". Outlook. India. 1 February 2010. मूल से 15 May 2013 को पुरालेखित.
- ↑ Paul, Dipankar (30 April 2011). "The Republic of Scams: Jeep purchase (1948)". MSN. मूल से 17 August 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 20 December 2011.
- ↑ Ray, Jayanta Kumar (3 April 2013). India's Foreign Relations, 1947-2007. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9781136197147.
- ↑ Cohen, Stephen P. (2010). Arming Without Aiming: India's Military Modernization. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9780815704027.
- ↑ "Media support crusade against corruption". The Hindu. India. 18 April 2011. मूल से 23 April 2011 को पुरालेखित.
- ↑ "Scamstory". Outlook. India. 13 August 1997. मूल से 1 February 2014 को पुरालेखित.
- ↑ "India bruised and shrunk". The Times of India. India. 6 February 2008.
- ↑ Noorani, Abdul Gafoor Abdul Majeed (1970). India's Constitution and Politics. Jaico books. Jaico Publishing House. पृ॰ 174. अभिगमन तिथि 12 October 2021.
- ↑ Upadhyay, R. (30 March 2001). "Political Corruption in India: An Analysis". South Asia Analysis Group. मूल से 18 December 2010 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 17 November 2011.
- ↑ "Worst political scandals of independent India". India TV News. 3 January 2013. अभिगमन तिथि 15 January 2013.
- ↑ Viswanathan, S. "Media support crusade against corruption". hindu.com. मूल से 23 April 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 12 October 2021.
- ↑ Rao, G.V.R Subba. "Nehru, Manmohan to blame for graft". The Hindu (11 April 2014). अभिगमन तिथि 19 November 2015.