व्यापार चक्र (business cycle अथवा आर्थिक चक्र अथवा बूम बस्ट चक्र) बाजार अर्थव्यवस्था में एक वर्ष अथवा कुछ माह में उत्पादन, व्यापार और सम्बंधित गतिविधि को सन्दर्भित करने वाला एक शब्द है।[1] किसी अर्थव्यवस्था में एक निश्चित समयान्तराल पर आर्थिक क्रियाओं में होने वाले बदलाव को व्यापार चक्र कहते है।

सरलीकृत कोण्ड्रातिव तरंग (Kondratiev wave)

पूँजीवादी व्यवस्था में सदा तेजी या सदा मन्दी नहीं रहती बल्कि तेजी के बाद मन्दी तथा मन्दी के बाद तेजी का क्रम आता रहता है। यह पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की प्रमुख विशेषता है। इसे ही व्यापार चक्र (ट्रेड सायकिल या इकनॉमिक सायकिल) कहते हैं। कई देशों (फ्रांस, इंग्लैण्ड, यूएसए) की अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के पश्चात फ्रांस के अर्थशास्त्री क्लीमेण्ट जगलर (Clement Juglar) ने सबसे पहले १८६२ 'व्यापार चक्र' की संकल्पना रखी थी।

व्यापारिक-चक्र के चढ़ाव के दौरान ऊँची राष्ट्रीय आय, अधिक उत्पादन, अधिक रोज़गार तथा ऊँची कीमतें पाई जाती हैं। इसको समृद्धि काल भी कहा जाता है। इसके विपरीत व्यापारिक चक्र के उतार के दौरान कम राष्ट्रीय आय, कम उत्पादन, कम रोजगार तथा नीचा कीमत स्तर पाया जाता है। इसको मन्दी काल भी कहा जाता है।

एनातोल मुराद के अनुसार, ‘‘तेजी और मन्दी के बार-बार उत्पन्न होने की अवस्था व्यापार चक्र की सबसे सरल परिभाषा है।’’

केन्ज के अनुसार, ‘‘व्यापार चक्र अच्छी व्यापार अवधि जिसमें कीमतों में वृद्धि तथा बेरोजगारी में प्रतिशत गिरावट होती है और खराब व्यापार अवधि जिसमें कीमतों में गिरावट तथा बेरोजगारी के प्रतिशत में वृद्धि होती है, का योग होता है।’’

प्रमुख आर्थिक सिद्धान्त मुख्यतः ४ प्रकार के चक्रों की बात करते हैं: विस्तार या तेजी, सुस्ती, मन्दी तथा पुनरुत्थान या समुत्थान। ये सभी चक्र सदा चलते रहते हैं किन्तु इनके आवर्तन की अवधि अलग-अलग होती है।

  • किचिन चक्र (Kitchin cycle) -- (3-4 वर्ष);
  • जगलर चक्र (uglar cycle) -- (8-10 वर्ष);
  • कजनेट चक्र (Kuznets cycle) -- (15 से 25 वर्ष);
  • कोन्द्रातिफ चक्र (Kondratieff cycle) -- (40 से 60 वर्ष)

सैम्युअलसन का व्यापार चक्र का सिद्धान्त अर्थव्यवस्था में चक्रीय परिवर्तन गुणक तथा त्वरक की अंतर्क्रियाओं का परिणाम है। हिक्स का व्यापार चक्र का सिद्धान्त निवेश में परिवर्तन के कारण गुणक तथा त्वरक में अन्तर्व्यवहार को बताता है जिसके कारण चक्रीय उतार-चढ़ाव होते है।

व्यापार चक्र की सामान्य अवस्थाएँ

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शुम्पीटर ने अपने पुस्तक 'ट्रेड सायकिल" में व्यापार चक्र सम्बन्धी चार अवस्थाओं को बताया है और ये अवस्थाएं अर्थव्यवस्था में एक चक्रीय प्रभाव को जन्म देती है। इन अवस्थाओं की समयावधि निश्चित नहीं होती है। विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं की आर्थिक उन्नति सन्तुलित पथ के अनुसार न होकर इन उतार-चढ़ाव के माध्यम से होती रही है। यह जरूरी नहीं है कि ये व्यापारिक चक्र विभिन्न देशों या समयावधियों में बिल्कुल एक जैसे हों। व्यापारिक चक्र विभिन्न देशों में विभिन्न प्रकार के होते हैं।

व्यापार चक्र की चार अवस्थाएं इस प्रकार हैः

  • विस्तार या तेजी (Expansion or Boom),
  • सुस्ती (Recesion),
  • मन्दी (Depresion or Trough or Contraction), तथा
  • पुनरुत्थान या समुत्थान (Recovery or Revival)।

विस्तार या तेजी

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व्यापार चक्र की इस अवस्था में आय, रोजगार, माँग व कीमतें आदि न केवल ऊंचे स्तर पर होती हैं बल्कि वे बढ़ भी रही होती हैं। इस अवस्था में वस्तुओं की कीमतें तेजी से बढ़ती हैं परन्तु साधनों की आय जैसे मजदूरी, ब्याज दर, लगान आदि इतनी तेजी से नहीं बढ़ती हैं। अर्थात् वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की तुलना में उत्पादन लागत कम बढ़ती है। इससे उत्पादकों के लाभ बढ़ते रहते हैं। अर्थव्यवस्था में आशावादी वातावरण छा जाता है तथा निवेश व अन्य आर्थिक क्रियाओं का तेजी से विस्तार होता है। इसमें मुद्रास्फीति की पूर्ण रोज़गार से अधिक वाली अवस्था उत्पन्न हो जाती है।

सुस्ती या अवसाद

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जब आर्थिक क्रियाएँ उच्चतम सीमा को प्राप्त करने बाद नीचे गिरना शुरू करती हैं तो वह सुस्ती या अवसाद की अवस्था कहलाती है। यह अवस्था अपेक्षाकृत कम समय अवधि की होती है। इसका विस्तार उच्चतम सीमा से सन्तुलन पथ तक का होता है। इस अवस्था में संकुचनवादी शक्तियां विस्तारवादी शक्तियों पर विजय प्राप्त कर लेती हैं तथा विस्तारवादी चक्र को नीचे मोड़ने में सफल हो जाती हैं। इसके अन्तर्गत कीमतें गिरने लग जाती हैं जो फर्मों के लाभ को कम करती रहती हैं। कुछ फर्में अपना उत्पादन कम कर देती हैं तथा अन्य बन्द कर देती हैं। अतः इस अवस्था में एक ऐसी प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिसमें निवेश, रोजगार, आय, माँग तथा कीमतें इत्यादि सभी निरन्तर गिरते रहते हैं।

इस अवस्था में लोगों की क्रय शक्ति में कमी के कारण कीमतें गिरती रहती हैं। सामान्य आर्थिक क्रियाओं में निरन्तर गिरावट की प्रक्रिया अर्थव्यवस्था में अति उत्पादन, बेरोज़गारी आदि समस्याओं को और गम्भीर बना देती है। सामान्य आर्थिक क्रियाओं में गिरावट के कारण साख का संकुचन होता जाता है। ब्याज दर काफी नीचे आ जाती है परन्तु निवेश नहीं बढ़ा पाता क्योंकि उद्यमियों में निराशावादी वातावरण छाया रहता है। अतः मन्दी की विशेषता यह है कि इस अवस्था में बड़े पैमाने पर बेरोज़गारी, कीमतों में सामान्य गिरावट के कारण लाभ, मजदूरी, ब्याज दर, उपभोग, निवेश, बैंक जमा व साख सभी निरन्तर गिर कर निम्नत्तम सीमा तक पहुंच जाते हैं।

पुनरुत्थान या समुत्थान

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मन्दी काल के थोड़े समय बाद कुछ वस्तुओं की मांग बढ़ने लगती है जो उत्पादन, रोज़गार आदि को बढ़ावा देती है तथा पुनरुत्थान की अवस्था को जन्म देती है। जैसे कम टिकाऊ पदार्थ कुछ समय बाद समाप्त हो जाते हैं तथा इन पदार्थों की मांग अर्थव्यवस्था में अपने आप बढ़ जाती है। इस बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए निवेश बढ़ता है जो आय व उत्पादन तथा रोज़गार को बढ़ाता रहता है। इससे उद्योगों का उत्थान शुरू हो जाता है। इससे पूँजीपत पदार्थ के उद्योगों में भी उत्थान शुरू हो जाता है तथा अर्थव्यवस्था में आशावादी वातावरण शुरू हो जाता है। व्यावसायिक आशाएं बढ़ जाती हैं तथा निवेश बढ़ने लग जाता है। इस अवस्था में साख का विस्तार होने लग जाता है। इस प्रकार निवेश, आय, उत्पादन, रोज़गार, मांग, कीमतें आदि सभी एक-दूसरे को निरन्तर बढ़ाती रहती हैं। अन्ततः पुनरुत्थान की अवस्था तेजी की अवस्था में प्रवेश कर जाती है।

सैम्युअलसन का व्यापार चक्र का सिद्धान्त

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केन्ज़ द्वारा दिये गये सिद्धान्त में त्वरक की अवहेलना की गई है जो इसकी मुख्य कमजोरी मानी जाती है। जबकि सैम्युअलसन के अनुसार गुणक अकेला व्यापार चक्र की पूर्ण व्याख्या नहीं कर सकता। सैम्युअलसन ने व्यापार चक्र के सिद्धान्त का प्रतिपादन अपने एक लेख 'Interaction between the Multiplier Analysis and Principle fo Acceleration' में किया है।

सैम्युअलसन के अनुसार, व्यापार चक्र की पूर्ण व्याख्या गुणक तथा त्वरक की अंतर्क्रियाओं द्वारा ही की जा सकती है। केन्ज़ का व्यापार चक्र सिद्धान्त केवल गुणक पर निर्भर करता है। परन्तु गुणक तथा त्वरक की अंतर्क्रिया व्यापार चक्र सिद्धान्त के लिए अधिक महत्वपूर्ण है।

सिद्धान्त का मान्यताएँ

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इस मॉडल की मुख्य मान्यताएँ निम्न प्रकार हैंः

1. वर्तमान काल ( t ) का उपभोग व्यय पूर्व काल ( t-1 ) की आय से सम्बन्धित होता है।

2. वर्तमान काल का निवेश (I) पूर्वकाल की आय (Yt-1) तथा वर्तमान आय ( Yt ) पर निर्भर करता है।

3. इस मॉडल में बाहा्र तत्त्व सरकारी व्यय के रूप में शामिल किया गया है जो स्थिर माना गया है।

4. उपभोग की सीमान्त प्रवृति 0.5 है।

5. त्वरक का मूल्य 1 है अर्थात् उपभोग में जितनी वृद्धि होगी, प्रेरित निवेश में भी उतनी ही वृद्धि होगी।

6. गुणक तथा त्वरक की सभी मान्यताएँ इस मॉडल की भी मान्यताएँ समझी जाती हैं।

सैम्युअलसन के अनुसार निवेश में वृद्धि होने के कारण आय में वृद्धि होती है। यह वृद्धि गुणक के मूल्य पर निर्भर करती है। सैम्युअलसन ने गुणक की व्याख्या पिछड़े सम्बन्ध के रुप में इस प्रकार की है कि किसी समय अवधि t का उपभोग उस समय अवधि की आय का नहीं बल्कि उससे पहले की अवधि अर्थात् (t-1) में मिली आय पर निर्भर करता है अर्थात्

आय में वृद्धि होने पर उपभोग में वृद्धि होती है और उपभोग में वृद्धि होने पर निवेश में वृद्धि होती है। इस प्रकार निवेश में होने वाली वृद्धि त्वरक के मूल्य पर निर्भर करती है। गुणक तथा त्वरक की अन्तर्क्रिया के कारण ही अर्थव्यवस्था में चक्रीय परिवर्तन होते हैं। इन परिवर्तनों की गति तथा विस्तार गुणक तथा त्वरक के मूल्यों पर निर्भर करता है। इनके मूल्य जितने अधिक होंगे चक्रीय परिवर्तन का भी विस्तार उतना की अधिक होगा।

सिद्धान्त की आलोचनाएँ

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सैम्युअलसन के सिद्धान्तकी आलोचनाएं निम्न आधार पर की जा सकती हैः

  • 1. यह सिद्धान्त स्वतन्त्र व्यय में की गई एक बार की वृद्धि को स्थिर मानता है परन्तु सरकारी व्यय बढ़ता रहता है। इस अवस्था में यह सिद्धान्त व्यापार चक्र की व्याख्या नहीं कर सकता है।
  • 2. इस सिद्धान्त में बाहरी तत्त्वों जैसे युद्ध आदि संकट को शामिल नहीं किया गया है।
  • 3. यह सिद्धान्त व्यावहारिक कम तथा सैद्धान्तिक अधिक माना जाता है।
  • 4. इसमें α तथा β को स्थिर माना है जो वास्तव में बदलते रहते हैं।
  • 5. व्यापार चक्र की समयावधि नहीं दी गई।

इन सीमाओं के होते हुए भी सिद्धान्तव्यापार चक्र की भली-भांति व्याख्या करता है तथा नये सिद्धान्तों की उत्पत्ति करने में सहायक सिद्ध हुआ है।

हिक्स का व्यापार चक्र का सिद्धान्त

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जॉन हिक्स भी देखें

हिक्स ने व्यापार चक्र के सिद्धान्त की व्याख्या 1950 में अपनी पुस्तक 'Contribution to the Theory fo theTrade Cycle' में की। हिक्स ने भी सैम्युअलसन की तरह गुणक तथा त्वरक की अन्तर्क्रिया द्वारा व्यापारिक चक्रों की घटने की व्याख्या की है। इन दोनों में अन्तर यह है कि हिक्स ने व्यापार चक्र को आर्थिक विकास से जोड़ दिया है। उन्होंने व्यापार चक्र की समस्या को एक बढ़ती अर्थव्यवस्था की समस्या माना है। अर्थात् एक ऐसी अर्थव्यवस्था जिसमें आर्थिक उतार-चढ़ाव एक बढ़ती प्रवृत्ति के इर्द-गिर्द होते हैं। इस प्रकार हिक्स का व्यापार चक्र मॉडल व्यापार चक्र सिद्धान्त को आर्थिक विस्तार के साधनों से जोड़ने की ओर एक महत्वपूर्ण कदम है।

इस सिद्धान्त में स्वतन्त्र निवेश को विकास का साधन माना गया है जो बढ़ती जनसंख्या तथा तकनीकी प्रगति के अन्तर्गत अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अतः हिक्स के मॉडल में जो धारणाएं महत्वपूर्ण हैं वे इस प्रकार हैंः सन्तुलित विकास दर अर्थात् वास्तविक बचत तथा वास्तविक निवेश में सन्तुलन, प्रेरित व स्वतन्त्र निवेश तथा गुणक-त्वरक अन्तर्क्रिया की प्रक्रियाएं पाई जाती है। स्वतन्त्र निवेश तथा प्रेरित निवेश में अन्तर इस प्रकार किया गया है कि प्रेरित निवेश उत्पादन स्तर में परिवर्तन का तथा स्वतन्त्र निवेश वर्तमान उत्पादन स्तर का फलन है। हिक्स स्वतन्त्र निवेश में सार्वजनिक निवेश को सम्मिलित करता है जो आविष्कार होने के साथ-साथ बढ़ता है। हैरोड ने इसे दीर्घकालीन निवेश कहा है।

हिक्स के सिद्धान्त की मान्यताएँ

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अपने व्यापार चक्र सिद्धान्त को विकसित करने के लिए हिक्स ने निम्न मान्यताओं को लिया हैः

1. हिक्स ने एक प्रगतिशील अर्थव्यवस्था की कल्पना की है जिसमें स्वतन्त्र निवेश नियमित दर से बढ़ रहा होता है ताकि व्यवस्था में सन्तुलन बना रहे।

2. बचत तथा निवेश दरों में वृद्धि अर्थव्यवस्था को संतुलन पथ से दूर ले जाती है।

3. हिक्स ने गुणक तथा त्वरक के मूल्यों को स्थिर माना है।

4. उत्पादन को पूर्ण रोज़गार स्तर से ज्यादा नहीं बढ़ाया जा सकता है।

5. त्वरक का मूल्य इकाई से अधिक होता है तथा कुल निवेश कभी भी शून्य से नीचे नहीं गिरता है।

6. गुणक तथा त्वरक पिछड़े सम्बन्ध के रुप में कार्य करते है।

हिक्स के सिद्धान्त की व्याख्या

एक अर्थव्यवस्था सन्तुलन की स्थिति में है। इस अर्थव्यवस्था में स्वतन्त्र निवेश के कारण गुणक की कार्यशीलता से निवेश में कई गुना अधिक वृद्धि होगी, उपभोग बढ़ेगा, अधिक उत्पादन की आवश्यकता होगी, ज्यादा मात्रा में निवेश करना पडे़गा और आय में अधिक वृद्धि होगी। आय में तेजी से वृद्धि होने पर उपभोग की सीमान्त प्रवृति कम हो जाएगी और गुणक व त्वरक की विपरीत क्रियाशीलता के कारण उपभोग में होने वाली कमी के कारण निवेश में अधिक मात्रा में कमी तथा आय में और भी अधिक कमी होगी। इस प्रकार अर्थव्यवस्था तेजी की स्थिति से हटकर मन्दी की अवस्था में आ जाएगी।

चढ़ाव (upswing) के अन्तर्गत गुणक तथा त्वरक की मिली-जुली क्रिया से आय बढ़ती है। अर्थव्यवस्था में गुणक त्वरक की अन्तर्किया से आय प्रजनन तथा निवेश की एक निरन्तर बढ़ती प्रक्रिया प्राप्त होती है जिसको "leverage fefects" कहा जाता है। यह प्रक्रिया निरन्तर चलती रहती है जब तक पूर्ण रोज़गार का सीमा बिन्दु (full employments ceiling point) प्राप्त नहीं हो जाता। एक गतिशील अर्थव्यवस्था (dynamic economy) में यह पूर्ण रोज़गार सीमा बिन्दु ऊपर सरकता रहता है, इसलिए स्थैतिक अर्थव्यवस्था की तुलना में इसको प्राप्त करने में अधिक समय लग सकता है। परन्तु जब एक बार यह उच्चतम सीमता (Ceiling) छू ली जाती है तो चक्र नीचे की ओर रूझान कर देता है।

आय का ऊपर वाला मोड़ बिन्दु (turning point) कुछ साधनों जैसे जनसंख्या, तकनीकी, पूँजी स्टॉक आदि द्वारा निर्धारित होता है। विस्तार की प्रक्रिया उच्चतम सीमा से टकराता है तथा नीचे की ओर मुड़ जाता है या कुछ अवस्थाओं में जब गुणक-त्वरक की अन्तर्क्रिया इतनी मजबूत नहीं होती तो सीमा को छूने से पहले ही नीचे की ओर मोड़ शुरू हो जाता है। निवेश में कटौती निरन्तर होती जाती है परन्तु यह कटौती अनन्त तक नहीं होती क्योंकि अर्थव्यवस्था की निचली सीमा भी होती है जो इस बात निर्भर करती है कि कुल निवेश शून्य से नीचे नहीं गिर सकता। इस निचली सीमा पर कुछ अनिवार्य मूल निवेश, जो मशीनों के रख-रखाव आदि पर खर्च अवश्य करना पड़ता है। इतना ही नहीं स्वतन्त्र निवेश इस अवस्था में अधिक महत्वपूर्ण सिद्ध होता है तथा यह अनिवेश (disinvestment) की मात्रा से अधिक होता है। इस प्रकार शुद्ध निवेश में वृद्धि राष्ट्रीय आय को ऊपर बढ़ाने का कारण बनता है।

हिक्स के सिद्धान्त की आलोचनाएँ

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हिक्स के व्यापार चक्र सिद्धान्त की निम्न आलोचना की जा सकती है :

1. हिक्स ने व्यापार चक्र की व्याख्या करते समय गुणक तथा त्वरक को स्थिर माना है।

2. हिक्स का सिद्धान्त यह मान कर चलता है कि साधनों को पूर्ण रोज़गार प्राप्त होता है। परन्तु काल्डोर के अनुसार उद्योगों में अतिरिक्त उत्पादन क्षमता हमेशा विद्यमान रहती है।

3. हिक्स का सिद्धान्त अत्यधिक गणितीय तथा यांत्रिक है। परन्तु वास्तविक अर्थव्यवस्थाओं में परिवर्तन इतने यान्त्रिक नहीं पाये जाते हैं।

4. इस सिद्धान्त की उच्चतम सीमा कैसे मोड़ उत्पन्न करती है इस तथ्य पर भी अनेक अर्थशास्त्रियों ने सन्देह व्यक्त किया है।

5. अर्थव्यवस्था का निम्नत्तम सीमा पर पहुंचने का कारण यह होता है कि यहां अनिवेश की दर अधिकत्तम होती है। अर्थात अनिवेश के कारण आय पर नीचे गिरने के दबाव की अपेक्षा स्वतन्त्र निवेश का आय पर उपर चढ़ने का दबाव अधिक होता है।

6. कुछ अर्थशास्त्रियों ने स्वतन्त्र निवेश तथा प्रेरित निवेश में अन्तर करना निरर्थक माना है क्योंकि दोनों का प्रभाव उत्पादन व आय पर समान हो सकता है। अल्पकाल में प्रत्येक निवेश स्वतन्त्र निवेश होता है। इसी प्रकार दीर्घकाल में प्रत्येक निवेश प्रेरित निवेश होता है।

7. यह सिद्धान्त व्यापार चक्र की शक्तियों को आर्थिक विकास की शक्तियों के साथ पूर्ण रूप से समावेश करने में असफल रहा है।

व्यापार चक्र को नियन्त्रित करने के उपाय

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व्यापार चक्रों के कारण एक अर्थव्यवस्था कोमुद्रास्फीति, बेरोजगारी, मन्दी आदि अनेक परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है जिस कारण से समाज के आर्थिक जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसलिये व्यापार चक्रों को नियन्त्रित करना आवश्यक हो जाता है। व्यापार चक्रों को नियन्त्रित करने के निम्न उपाय अपनाये जाते हैः

मौद्रिक नीति

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सरकार मौद्रिक नीति के माध्यम से भी व्यापार चक्रों को नियन्त्रित कर सकती है सरकार नई मुद्रा जारी कर सकती है और नई मुद्रा जारी होने से बैकों के पास जमा साविधि बढ़ जाती है जिससे बैंक सांख का निर्माण-कर सकते है। लोग बैंकों से अधिक पैसा की मांग करते है क्योंकि अधिक मुद्रा होने से बैंकों की ब्याज की दर कम हो जाती है और लोग बैंकों से अधिक पैसा उधार लेते है। इस प्रकार, मौद्रिक नीति के विस्तार से व्यापार चक्र को नियन्त्रित किया जा सकता है।

राजकोषीय नीति

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मन्दी से निपटने के लिए सरकार की राजकोषीय नीति सबसे अधिक अच्छा उपकरण है। सरकार की राजकोषीय नीति के कई अंग होते है जैसे कि सार्वजनिक राजस्व, सार्वजनिक ऋण, सार्वजनिक व्यय। राजकोषीय नीति के माध्यम से ही व्यापार चक्रों को नियन्त्रित किया जा सकता है।

राज्य नियन्त्रित निजी निवेश

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राज्य सरकार निजी निवेश के द्वारा भी चक्रों को नियन्त्रित कर सकती है। राज्य सरकार निजी निवेशकों को राज्य में निवेश करके व्यापार चक्रों को नियन्त्रित कर सकती है। भारत सरकार ने 1956 में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को बढ़ावा देने के लिए 1973 में FERA की स्थापना की।

अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं की नीतियाँं

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अर्न्तराष्ट्रीय स्तर के माध्यम से व्यापार चक्र को नियन्त्रित किया जा सकता है। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मन्दी को नियन्त्रित करने के लिए IMF, WTO, OECD आदि अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं के द्वारा भी व्यापार चक्र को नियन्त्रित करने के लिए नीतियां बनाई जाती है।

आर्थिक सुधारों को मान्यता

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आर्थिक सुधारों के माध्यम से प्रमाणित उद्योगों की पहचान की जाती है जो उद्योग घाटे में चल रहे है उन उद्योगों में भारी मात्रा में निवेश करके व्यापार चक्रों से छुटकारा पाया जा सकता है।

इन्हें भी देखें

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बाहरी कड़ियाँ

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  1. A. F. Burns and W. C. Mitchell, Measuring business cycles, New York, National Bureau of Economic Research, 1946.