"मिखाइल शोलोखोव": अवतरणों में अंतर
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== प्रकाशित पुस्तकें == |
== प्रकाशित पुस्तकें == |
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* कथा साहित्य |
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# दोन की कहानियाँ -1923 |
# दोन की कहानियाँ -1923 |
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# 'धीरे बहे दोन रे...' (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) - 1928 से 1940 |
# 'धीरे बहे दोन रे...' (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) - 1928 से 1940 |
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# कुँवारी भूमि का जागरण, प्रथम भाग (आने वाले कल के बीज) - 1932 |
# कुँवारी भूमि का जागरण, प्रथम भाग ('आने वाले कल के बीज') - 1932 |
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# कुँवारी भूमि का जागरण, द्वितीय भाग (दोन पर फसल कटाई) - 1960 |
# कुँवारी भूमि का जागरण, द्वितीय भाग ('दोन पर फसल कटाई') - 1960 |
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# इंसान का नसीबा (लंबी कहानी/लघु उपन्यास) - 1957 |
# इंसान का नसीबा (लंबी कहानी/लघु उपन्यास) - 1957 |
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# वे देश के लिए लड़े (दे फाइट फॉर देयर कंट्री) - 1959 |
# वे देश के लिए लड़े (दे फाइट फॉर देयर कंट्री) - 1959 |
11:24, 27 दिसम्बर 2017 का अवतरण
मिखाइल शोलोख़ोव | |
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चित्र:Sholokhov-1938.jpg शोलोख़ोव,1938 | |
जन्म |
24 मई 1905 वेशेन्स्काया, रूसी साम्राज्य |
मौत |
21 फ़रवरी 1984 वेशेन्स्काया, सोवियत संघ |
राष्ट्रीयता | सोवियत |
पेशा | उपन्यासकार |
पुरस्कार |
नोबेल पुरस्कार, साहित्य 1965 |
हस्ताक्षर |
मिखाइल शोलोख़ोव (1905-1984) रूसी साहित्य के सुप्रसिद्ध कथाकार एवं साहित्य के क्षेत्र में 1965 के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं।
जीवन-परिचय
मिखाइल अलेक्सान्द्रोविच शोलोख़ोव का जन्म एक निम्न मध्यवर्गीय रूसी किसान परिवार में 24 मई 1905 ई० को हुआ था। उनका परिवार दोन कज्जाक सेना के भूतपूर्व क्षेत्र वेशेन्स्काया स्तानित्सा (बड़ा कज्जाक गाँव) के क्रुझिलिन खुतोर (फार्म-प्रतिष्ठान) में रहता था। उनके पिता ने खेती और पशुओं के व्यापार से लेकर कपड़ा बुनने तक कई काम किये। उनकी अशिक्षित माँ एक उक्रेनी किसान परिवार की थीं और एक कज्जाक की विधवा थीं। बाद में अपने बेटे से चिट्ठी-पत्री के उद्देश्य से उन्होंने लिखना पढ़ना सीखा था।
शोलोख़ोव की शिक्षा कारगिन, बोगुचार और वेशेन्स्काया के कई स्कूलों में हुई। 1918 में जब ऊपरी दोन क्षेत्र भी गृहयुद्ध की चपेट में आ गया तो शोलोख़ोव की पढ़ाई का सिलसिला असमय ही समाप्त हो गया। निर्णय की ऐतिहासिक घड़ी में शोलोख़ोव ने अपना रास्ता चुनने में कोई हिचक नहीं दिखायी। उस समय ऊपरी दोन क्षेत्र में सोवियत विरोधी श्वेत गार्डों की बची-खुची टुकड़ियों की विध्वंसक कार्रवाइयों और कज्जाकों के विद्रोहों के खिलाफ बोल्शेविक जूझ रहे थे। शोलोख़ोव ने बोल्शेविकों का पक्ष लिया और लाल सेना में शामिल होकर प्रतिक्रियावादियों से लोहा लिया। इन अनुभवों का इस्तेमाल आगे चलकर उन्होंने अपनी कृतियों में किया। 1922 तक वे दोन के क्षेत्र में रहे। इन दिनों उन्हें विभिन्न परिस्थितियों में रहना पड़ा था। 1923 में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद वे माॅस्को आये और उन्होंने कई काम किये जिनमें बोझा ढोने और ईंटें जोड़ने का काम भी था।
शोलोख़ोव 1932 से कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य रहे। 1935 में उन्हें सोवियत संसद का सदस्य चुन लिया गया, लेकिन गलत चीजों का विरोध करने के प्रति उनके तेवर कतई नर्म नहीं हुए। द्वितीय महायुद्ध में वे सोवियत सेना की ओर से फासिस्टों के विरुद्ध युद्ध में भी शामिल होकर लड़े और युद्ध समाप्त होने पर शांति आंदोलन के बहुत बड़े समर्थक बने।
रचनात्मक परिचय
1923 ई० से ही शोलोख़ोव की कृतियों का प्रकाशन आरंभ हो गया था। 1925 में उनकी पहली पुस्तक दोन की कहानियाँ प्रकाशित हुई। शोलोख़ोव का सर्जनात्मक विकास तेजी से हुआ। कम उम्र के बावजूद उनका जीवनानुभव समृद्ध हो चुका था। 'दोन की कहानियाँ' के 3 वर्ष बाद ही (1928 में) उनके जगत्-प्रसिद्ध उपन्यास धीरे बहे दोन रे... (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) का प्रथम भाग प्रकाशित हुआ, जिसने उन्हें सोवियत लेखकों की प्रथम श्रेणी में प्रतिष्ठित कर दिया। 1929 में इस उपन्यास का दूसरा भाग, 1933 में तीसरा और 1940 में चौथा भाग प्रकाशित हुआ। 1941 में कुंवारी भूमि का जागरण उपन्यास का पहला भाग प्रकाशित हुआ। इन कृतियों की लोकप्रियता का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1960 के दशक के अंदर ही 'धीरे बहे दोन रे...' (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) के 149 और 'कुंवारी भूमि का जागरण' (वर्जिन साॅयल अपटर्न्ड) के 120 संस्करण प्रकाशित हुए। प्रकाशन के कुछ समय पश्चात् ही सोवियत संघ की 50 भाषाओं में अनूदित होकर ये उपन्यास जन-जन तक पहुँचे तथा अनेक विदेशी भाषाओं में भी इनके अनुवाद हुए। 1980 तक सोवियत संघ की कुल 84 भाषाओं में शोलोख़ोव की पुस्तकों की 7 करोड़ 90 लाख प्रतियाँ छप चुकी थीं।
प्रकाशित पुस्तकें
- कथा साहित्य:
- दोन की कहानियाँ -1923
- 'धीरे बहे दोन रे...' (एंड क्विट फ्लोज द डॉन) - 1928 से 1940
- कुँवारी भूमि का जागरण, प्रथम भाग ('आने वाले कल के बीज') - 1932
- कुँवारी भूमि का जागरण, द्वितीय भाग ('दोन पर फसल कटाई') - 1960
- इंसान का नसीबा (लंबी कहानी/लघु उपन्यास) - 1957
- वे देश के लिए लड़े (दे फाइट फॉर देयर कंट्री) - 1959
- दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान लिखे गये आलेखों के संकलन:
- दोन किनारे
- दक्षिण में
- कज्जाक