बीरबल साहनी
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भारत के पुरावनस्पतिशास्त्री बीरबल साहनी | |
जन्म |
नवंबर १८९१ शाहपुर, पंजाब (पाकिस्तान) |
मृत्यु |
१० अप्रैल, १९४९ लखनऊ |
आवास | लखनऊ |
नागरिकता | भारत |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
जातियता | पंजाबी |
क्षेत्र | पुरावनस्पति विज्ञान |
संस्थान | बीरबल साहनी पुरावनस्पतिविज्ञान संस्थान |
बीरबल साहनी (नवंबर, 1891 - 10 अप्रैल, 1949) अंतरराष्ट्रीय ख्याति के पुरावनस्पति वैज्ञानिक थे।
जीवनी
[संपादित करें]बीरबल साहनी का जन्म नवंबर, 1891 को पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) के शाहपुर जिले के भेड़ा नामक एक छोटे से व्यापारिक नगर में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इनके पिता रुचि राम साहनी रसायन के प्राध्यापक थे। उनका परिवार वहां डेरा इस्माइल खान से स्थानांतरित हो कर बस गया था।
शिक्षा
[संपादित करें]प्रोफेसर रुचि राम साहनी ने उच्च शिक्षा के लिए अपने पांचों पुत्रों को इंग्लैंड भेजा तथा स्वयं भी वहां गए। वे मैनचेस्टर गए और वहां कैम्ब्रिज के प्रोफेसर अर्नेस्ट रदरफोर्ड तथा कोपेनहेगन के नाइल्सबोर के साथ रेडियोसक्रियता पर अन्वेषण कार्य किया। प्रथम महायुद्ध आरंभ होने के समय वे जर्मनी में थे और लड़ाई छिड़ने के केवल एक दिन पहले किसी तरह सीमा पार कर सुरक्षित स्थान पर पहुंचने में सफल हुए। वास्तव में उनके पुत्र बीरबल साहनी की वैज्ञानिक जिज्ञासा की प्रवृत्ति और चारित्रिक गठन का अधिकांश श्रेय उन्हीं की पहल एवं प्रेरणा, उत्साहवर्धन तथा दृढ़ता, परिश्रम औरईमानदारी को है। इनकी पुष्टि इस बात से होती है कि प्रोफेसर बीरबल साहनी अपने अनुसंधान कार्य में कभी हार नहीं मानते थे, बल्कि कठिन से कठिन समस्या का समाधान ढूंढ़ने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। इस प्रकार, जीवन को एक बड़ी चुनौती के रूप में मानना चाहिए, यही उनके कुटुंब का आदर्श वाक्य बन गया था।
इनको १९१९ ई. में लन्दन विश्वविद्यालय से और १९२९ ई. में केंब्रिज विश्वविद्यालय से डी.एस-सी. की उपाधि मिली थी। भारत लौट आने पर ये पहले बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक नियुक्त हुए। १९३९ ई. में ये रॉयल सोसायटी ऑव लन्दन के सदस्य (एफ.आर.एस.) चुने गए और कई वर्षों तक सायंस कांग्रेस और नेशनल ऐकेडेमी ऑव सायंसेज़ के अध्यक्ष रहे। इनके अनुसंधान जीवाश्म (फॉसिल) पौधों पर सबसे अधिक हैं। इन्होंने एक फॉसिल 'पेंटोज़ाइली' की खोज की, जो राजमहल पहाड़ियों में मिला था। इसका दूसरा नमूना अभी तक कहीं नहीं मिला है। हिंदू विश्वविद्यालय से डा. साहनी लाहौर विश्वविद्यालय गए, जहाँ से लखनऊ में आकर इन्होंने २० वर्ष तक अध्यापन और अन्वेषण कार्य किया।
ये अनेक विदेशी वैज्ञानिक संस्थाओं के सदस्य थे। लखनऊ में डा. साहनी ने पैलिओबोटैनिक इंस्टिट्यूट की स्थापना की, जिसका उद्घाटन पं. जवाहरलाल ने १९४९ ई. के अप्रैल में किया था। पैलिओबोटैनिक इंस्टिट्यूट के उद्घाटन के बाद शीघ्र ही साहनी महोदय की मृत्यु हो गई। इन्होंने वनस्पति विज्ञान पर पुस्तकें लिखी हैं और इनके अनेक प्रबंध संसार के भिन्न भिन्न वैज्ञानिक जर्नलों में प्रकाशित हुए हैं। डा. साहनी केवल वैज्ञानिक ही नहीं थे, वरन् चित्रकला और संगीत के भी प्रेमी थे। भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने इनके सम्मान में 'बीरबल साहनी पदक' की स्थापना की है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ वनस्पति वैज्ञानिक को दिया जाता है। इनके छात्रों ने अनेक नए पौधों का नाम साहनी के नाम पर रखकर इनके नाम को अमर बनाए रखने का प्रयत्न किया है।
प्रमुख प्रकाशन
[संपादित करें]- 1915. Foreign pollen in the ovules of Ginkgo and its significance in the study of fossil plants. New Phytol. 14 (4 and 5), 149–151.
- 1915. The anatomy of Nephrolepis volzibilis J. Sim, with remarks on the biology and morphology of the genus. New Phytol. 14 (8 and 9), 251–274.
- 1916. The vascular anatomy of the tubers of Nephrolepis. New Phytol. 15 (3 and 4), 72–80.
- 1917. Observations on the evolution of branching in the Filicales. New Phytol. 16 (1 and 2), 1–23.
- 1919. (With J. C. WILLIS.) Lawson's text book of botany. London: Univ. Tut. Press.
- 1919. On an Australian specimen of Clepsydropsis. Ann. Bot. 33 (129), 81–92.
- 1920. (With A. C. SEWARD) Indian Gondwana plants: a revision. Mem. Geol. Surv. Ind. Pal. Ind. 7 (I), 1–40.
- 1921. A stem impression from the plant-bearing beds near Khunmu (Kashmir), provisionally referred to Gangamopteris Kashmirensis Seward. Proc. (8th Ind. Sci. Cong. Cal.) Asiat. Sac. Beng. (N.S.), 17 (4), 200.
- 1921. The present position of Indian Palaeobotany. Pres. Add. 8th Ind. Sci. Cong. Cal. Proc. Asiat. Sac. Bengal (N.S.), 17 (4), 152–175.
- 1924. On the anatomy of some petrified plants from the Government Museum, Madras. Proc. 11th Ind. Sci. Cong. Bangalore, p. 141.
- 1925. The ontogeny of vascular plants and the theory of recapitulation. J. Ind. Bat. Soc. 4 (6), 202–216.
- 1925. (With E. J. BRADSHAW) A fossil tree in the Panchet Series of the Lower Gondwanas near Asansol. Rec. Geol. Surv. Ind. 58 (I), 77–79.
- 1931. On certain fossil epiphytic ferns found on the stems of the Palaeozoic tree-fern Psaronius. Proc. 18th Ind. Sci. Cong. Nagpur, p. 270.
- 1931. Materials for a monograph of the Indian petrified palms. Proc. Acad. Sci. U.P. 1, 140–144.
- 1932. Homoxylon rajmalzalense gen. et sp. nov., a fossil angiospermous wood, devoid of vessels, from the Rajmahal Hills, Behar. Mem. Geol. Sura. Ind. Pal. Ind. 20 (2), 1–19.
- 1932. A petrified Williamsonia (W. Sewardiana, sp. nov.) from the Rajmahal Hills, India. Mem. Geol. Sura. Ind. Pal. Ind. 20 (3), 1–19.
- 1933. (With A. R. RAO.) On some Jurassic plants from the Rajmahal hills. J. Asiat. Soc. Bengal (N.S.), 27 (2), 183–208.
- 1933. Explosive fruits in Viscum japonicum Thunb. J. Ind. Bat. Soc. 12 (2), 96–101.
- 1934. (With B. P. SRIVASTAVTA) Thee silicified flora of the Deccan Intertrappean Series. Pt. 3. Sausarospermum Fermori. gen. et sp. nov. Proc. 21st Ind. Sci. Cong. Bombay, p. 318.
- 1934. Dr S. K. Mukerji, F.L.S. (1896–1934). (Obituary.) J. Ind. Bot. Soc. 13 (3), 245–249.
- 1934. (With A. R. RAO.) Rajmahalia paradoxa gen. et sp. nov. and other Jurassic plants from the Rajmahal hills. Proc. Ind. Acad. Sci. 1 (6), 258–269.
- 1934. Dr Dukinfied Henry Scott. (Obituary). Curr. Sci. 2 (lo), 392–395.
- 1934. The Deccan Traps: Are they Cretaceous or Tertiary? Curr. Sci. 3 (lo), 392–395.
- 1935. The relations of the Indian Gondwana flora with those of Siberia and China. Proc. 2nd Cong. of Curb. Stratig. Heerlen, Holland. Compte Rendti I,517–518.
- 1935. Homoxylon and related woods and the origin of angiosperms. Proc. 6th Int. Bat. Cong. Amsterdam, 2, 237–238.
- 1935. The Glossopteris flora in India. Proc. 6th Int. Bat. Cong. Amsterdam, 2, 245–248.
- 1936. The Karewas of Kashmir. Curr. Sci. 5 (I), 10–16.
- 1936. The Himalayan uplift since the advent of Man: its culthistorical significance. Curr. Sci. 5 (I), 10–16.
- 1936. A clay seal and sealing of the Shunga period from the Khokra Kot mound (Rohtak). Curr. Sci. 5 (2), 80–81.
- 1936. A supposed Sanskrit seal from Rohtak: A correction. Curr. Sci. 5 (4), 206–215.
- 1936. Wegener's theory of continental drift in the light of palaeobotanical evidence. J. Ind. Bot. Soc. 15 (5), 319–322.
- 1936. The Gondwana affinities of the Angara flora in the light of geological evidence. Nature, 138 (3499, 720–721.
- 1937. Speculations on the climates of the Lower Gondwanas of India. Proc. 17th Int. Geol. Cong. Moscow, pp. 217–218.
- 1937. An appreciation of the late Sir J. C. Bose. Sci. & Cult. 31 (6), 346–347.
- 1937. Professor K. K. Mathur. (Obituary). Curr. Sci. 5 (7), 365–366.
- 1937. Revolutions in the plant world. (Pres. Add.) Proc. Nut. Acad. Sci. Ind. 46–60.
- 1937. The age of the Deccan Trap. (General Discussion.) Proc. 24th Ind. Sci. Cong. Hyderabad, pp. 464–468.
- 1937. Wegener's theory of continental drift with reference to India and adjacent countries. (General discussion.) Proc. 24th Ind. Sci. Cong. Hyderabad, pp. 502–506.
- 1938. (With K. P. RODE.)Fossil plants from the Deccan Intertrappean beds at Mohgaon Kalan, C.P., with a note on the geological position of the plant-bearing beds. Proc. Nat. Acad. Sci. Ind. 7 (3), 165–174.
- 1938. Recent advances in Indian Palaeobotany. (Pres. Add. Botany Section.) Proc. 25th Ind. Sci. Cong. Jubil. Sess. Calcutta (2), 133–176; and Luck. Univ. Stud. (2), 1–100.
- 1940. The Deccan Traps: an episode of the Tertiary era. (Gen. Pres. Add.) 27th Ind. Sci. Cong. Mad. (2), pp. 1–21. Prakrati, 3 (I), 15–35. 1944 (Gujrati trans.). Prabuddha Karnataka, 22 (2), 5–19 (Kanares trans. by H. S. Rao).
- 1941. Permanent labels for microscope slides. Curr. Sci. 10 (1 I), 485–486.
- 1942. 'A short history of the plant sciences' and 'The cytoplasm of the plant cell'. Reviews. Curr. Sci. 11 (9), 369–372.
- 1944. (With B. S. TRIVEDI.) The age of the Saline Series in the Punjab Salt Range. Nature, 153, 54.
- 1945. The technique of casting coins in ancient India. Mem. Numis. Sac. Ind. (I), 1–68.
- 1945. Obituary Note o
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- लखनऊ स्थित बीरबल साहनी पुरावनस्पतिविज्ञान संस्थान
- भारत के प्रथम जुरासिक वैज्ञानिक बीरबल साहनी Archived 2020-09-25 at the वेबैक मशीन