वीणा
वीणा भारत के लोकप्रिय वाद्ययंत्र में से एक है जिसका प्रयोग प्राय: शास्त्रीय संगीत में किया जाता है।
वीणा सुर ध्वनिओं के लिये भारतीय संगीत में प्रयुक्त सबसे प्राचीन वाद्ययंत्र है। समय के साथ इसके कई प्रकार विकसित हुए हैं (रुद्रवीणा, विचित्रवीणा इत्यादि)। एक-तन्त्री वीणा] है। कुछ इसे गिटार का भी रूप बताते हैं। इसके इतिहास के बारे में अनेक मत हैं किंतु अपनी पुस्तक भारतीय संगीत वाद्य में प्रसिद्ध विचित्र वीणा वादक डॉ लालमणि मिश्र ने इसे प्राचीन त्रितंत्री वीणा का विकसित रूप सिद्ध किया। सितार पूर्ण भारतीय वाद्य है क्योंकि इसमें भारतीय वाद्योँ की तीनों विशेषताएं हैं। वीणा वस्तुत: तंत्री वाद्यों का सँरचनात्मक नाम है। तंत्री या तारों के अलावा इसमें घुड़च, तरब के तार तथा सारिकाएँ होती हैं।
सामान्य तौर पर इसमें चार तार होते हैं और तारों की लंबाई में किसी प्रकार का विभाजन (fret) नहीं होता (जबकि सितार में विभाजन किया जाता है)। इस कारण वीणा प्राचीन संगीत के लिये ज्यादा उपयुक्त है। वीणा में तारों की कंपन एक गोलाकार घड़े से तीव्रतर होती है तथा कई आवृत्ति ("frequency") की ध्वनियों के मिलने से "harmonic" ध्वनि का जनन होता है। सुरवाद्य होने के लिये ऐसी ध्वनियाँ आवश्यक हैं। विचित्र वीणा से प्रभावित हो कई कलाकार इसके आकार को छोटा करने का प्रयास कर चुके हैं किन्तु उससे ध्वनि का गाम्भीर्य भी परिवर्तित हो जाता है। गिटार को कुछ परिवर्तनों के साथ भारतीय सन्गीत हेतु उपयुक्त बना विश्वमोहन भट्ट उसे मोहन वीणा के नाम से प्रचलित कर चुके हैं यद्यपि यह चौकोर सपाट ब्रिज के अभाव में वीणा की रन्जन वीणा पूरी करती है।
सांस्कृतिक परिपेक्ष्य में वीणा
[संपादित करें]एक पौराणिक कथा के अनुसार वीणा का सृजन स्वयं भगवान शिव ने पार्वती देवी के रूप को समर्पित करते हुए किया था। कई बार नारीत्व के सौंदर्य के प्रसंग में भी वीणा का उल्लेख होता है। ताज्जुब नहीं कि वीणा कन्याओं के नाम के लिये बड़ा लोकप्रिय नाम रहा है। वैदिक साहित्य में वीणा का उल्लेख बारंबार संगीत के संदर्भ में होता है। मध्यकाल तक भी विभिन्न कलात्मक कृतियों में वीणा को शास्त्रीय संगीत से जोड़ा जाता रहा। उत्तर भारत में वीणा का स्थान प्रायः सितार ने लिया किंतु दक्षिण भारत में वीणा आज तक लोकप्रिय माना जा सकता है।
हिन्दुओं में ज्ञान व प्रायः संगीत की देवी सरस्वती को तकरीबन हमेशा ही वीणा के साथ दिखाया जाता है। सरस्वती देवी की प्रसिद्ध वन्दना में उन्हें वीणावरदंडमंडितकरा से संबोधित किया जाता है।