क़ौमी तराना
क़ौमी तराना | |
वाद्यों के लिए "पाक सरज़मीन" का संगीत | |
राष्ट्रीय जिसका राष्ट्रगान है | पाकिस्तान |
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बोल | हाफिज़ जालंधरी |
संगीत | अहमद ग़ुलामाली छागला, १९५० |
घोषित | १९५४ |
संगीत के नमूने | |
क़ौमी तराना पाकिस्तान का राष्ट्रगान है। इसे उर्दू में "क़ौमी तराना" (قومی ترانہ) कहा जाता है।[1] इसे हफ़ीज़ जालंधरी ने लिखा था और इसका संगीत अकबर मुहम्मद ने बनाया। यह गीत १९५४ में पाकिस्तान का राष्ट्रगान बना और उस से पहले जगन्नाथ आज़ाद द्वारा लिखित "ऐ सरज़मीन-ए-पाक" पाकिस्तान का राष्ट्रगान था।[2]
बोल
[संपादित करें]पाक सरज़मीन में सामान्य उर्दू के मुक़ाबले फ़ारसी शब्दों पर अधिक ज़ोर है।
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- 1.^ "तर्जुमान" का मतलब यहाँ है "जो बखान करे", यानि जो भूतकाल की महानता को लिखे या दर्शाए।
पहला पाकिस्तानी राष्ट्रगान
[संपादित करें]१४ अगस्त १९४७ को भारत विभाजित हुआ और पूर्व और पश्चिम में एक नए देश पाकिस्तान ने जन्म लिया। पाकिस्तान के कायदे आज़म मोहम्मद अली जिन्नाह का सपना साकार हुआ। नया देश बनने के साथ ही देश के लिए विभिन्न चिन्ह और प्रतीक चुनने का काम भी शुरू हुआ। देश का झंडा पहले ही तैयार हो चुका था, लेकिन राष्ट्र-गीत नही बना था। आज़ादी के समय पाकिस्तान के पास कोई राष्ट्र-गीत नही था। इसलिए जब भी ध्वज वन्दन होता " पाकिस्तान जिन्दाबाद, आज़ादी पाइन्दाबाद" के नारे लगते थे। जिन्नाह को यह मंज़ूर नही था। वे चाहते थे कि पाकिस्तान के राष्ट्र-गीत को रचने का काम शीघ्र ही पूरा करना चाहिए। उनके सलाह कारों ने उनको अनेकों जानेमाने उर्दू शायरों के नाम सुझाए जो गीत रच सकते थे। लेकिन जिन्नाह की सोच कुछ ओर ही थी। उन्हें लगा कि दुनिया के समक्ष पाकिस्तान की धर्मनिरपेक्ष छवि स्थापित करने का यह अच्छा मौका है। इसलिए उन्होने लाहौर के महानउर्दू शायर और मूल हिन्दू जगन्नाथ आज़ाद को कहा कि "मैं आपको पाँच दिन का ही समय दे सकता हुं, आप पाकिस्तान के लिए राष्ट्र-गीत लिखें"। जगन्नाथ आज़ाद अचम्भित भी थे और खुश भी थे। लेकिन पाकिस्तान के कट्टरपंथी नेता इससे बहुत नाराज़ हुए कि एक हिन्दू पाकिस्तान का राष्ट्र-गीत लिखेगा। लेकिन जिन्नाह की मर्ज़ी के आगे वे बेबस थे। आख़िरकार जगन्नाथ आज़ाद ने पाँच दिनों के अंदर राष्ट्र-गीत तैयार कर लिया जो जिन्नाह को बहुत पसंद आया। गाने के बोल थे -
ऐ सरज़मी ए पाक जर्रे तेरे हैं आज सितारो से तबनक रोशन है कहकशाँ से कहीं आज तेरी खाक
जिन्नाह ने इसे राष्ट्र-गीत के रूप मे मान्यता दी और उनकी मृत्यु तक यही गीत राष्ट्र-गीत बना रहा। लेकिन इस गीत की स्वीकृति के महज़ १८ महीने बाद ही जिन्नाह का देहांत हो गया और उनके साथ ही राष्ट्र-गीत की मान्यता भी ख़त्म कर दी गई। जगन्नाथ आज़ाद बाद में भारत चले आए।
जिन्नाह मृत्योपरांत
[संपादित करें]जिन्नाह की मृत्यु के बाद पाकिस्तान सरकार ने एक राष्ट्र-गीत कमेटी बनाई। और जाने माने शायरो के पास से गीत के नमूने मंगवाए। लेकिन कोई भी गीत राष्ट्र-गीत के लायक नही बन पा रहा था। आखिरकार पाकिस्तान सरकार ने १९५० मे अहमद चागला द्वारा रचित धुन को राष्ट्रीय धुन के रूप मे मान्यता दी। उसी समय ईरान के शाह पाकिस्तान की यात्रा पर आए और उन्होने धुन को काफी पसंद किया। यह धुन पाश्चात्य अधिक लगती थी, लेकिन राष्ट्र-गीत कमेटी का मानना था कि इसका यह स्वरूप पाश्चात्य समाज मे अधिक स्वीकृत होगा। सन १९५४ में उर्दू शायर हाफ़िज़ जलन्धरी ने इस धुन के आधार पर एक गीत की रचना की। यह गीत राष्ट्र-गीत कमेटी के सदस्यों को पसंद भी आया। और आखिरकार हाफ़िज़ जलन्धरी का लिखा गीत पाकिस्तान का राष्ट्र-गीत बना।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Information Ministry, Government of Pakistan. "Basic Facts". मूल से 13 अप्रैल 2006 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जुलाई 2011.
- ↑ "संग्रहीत प्रति". मूल से 7 नवंबर 2011 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 5 जुलाई 2011.