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ग्रीन का प्रमेय

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ग्रीन का प्रमेय ('ग्रीन-रिमेंन सूत्र या ग्रीन प्रमेयिका', कभी-कभी 'गॉस-ग्रीन प्रमेय' भी कहते हैं) किसी बन्द वक्र C के परितः रेखा-समाकल तथा समतल क्षेत्र D पर एक द्वि-समाकल के बीच सम्बन्ध है। यह स्टोक्स प्रमेय का विशेष स्थिति है। पहली बार 1828 में जॉर्ज ग्रीन ने एक शोधप्त्र में इसे प्रस्तुत किया था जिसका नाम था, विद्युत एवं चुम्बकत्व के सिद्धान्तों के लिए गणितीय विश्लेषण के अनुप्रयोग पर एक निबन्ध ( An Essay on the Application of Mathematical Analysis to the Theories of Electricity and Magnetism) । इसकी पहली उपपत्ति बर्नार्द रीमान (Bernhard Riemann) ने दिया था।

xy-तल में स्थित क्षेत्र D जो वक्रखण्डों C1, C2, C3, C4 द्वारा बन्द है।

माना C एक सरल बन्द वक्र है जो धनात्मक ओरिन्टेड, खण्डशः स्मूथ है। इस बन्द वक्र में क्षेत्र D घिरा हुआ है। यदि f और g, क्षेत्र D पर पारिभाषित x, y के दो फलन हैं जिनके आंशिक अवकलज सतत हैं, तो

यहाँ C के परितः समाकलन का मार्ग वामावर्त (anticlockwise) है।

क्षेत्रफल की गणना

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ग्रीन प्रमेय दर्शाता है कि रेखा-समाकलन की गणना करते हुए क्षेत्रफल की गणना की जा सकती है। [1] हम जानते हैं कि D के क्षेत्रफल का सूत्र यह है-

यदि हम f और g को इस प्रकार चुनें कि , तो क्षेत्रफल का निम्नलिखित सूत्र प्राप्त होता है जो बन्द रेखा-समाकलन है-

भी लिखा

क्षेत्रफल के अन्य सूत्र ये भी हैं, जिन्हें ग्रीन प्रमेय द्वारा निकाला जा सकता है-

[1]

सन्दर्भ

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  1. Stewart, James. Calculus (6th संस्करण). Thomson, Brooks/Cole.