जाम्बवन्त
इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर इस लेख में सुधार करें। स्रोतहीन सामग्री ज्ञानकोश के उपयुक्त नहीं है। इसे हटाया जा सकता है। (सितंबर 2018) स्रोत खोजें: "जाम्बवन्त" – समाचार · अखबार पुरालेख · किताबें · विद्वान · जेस्टोर (JSTOR) |
जाम्बवन्त रामायण के एक प्रमुख पात्र हैं। वे ऋक्ष प्रजाति के थे।
उनका सन्दर्भ महाभारत से भी है। स्यमंतक मणि के लिये श्री कृष्ण एवं जामवन्त में नंदिवर्धन पर्वत (तत्कालीन नाँदिया, सिरोही, राजस्थान ) पर २८ दिनो तक युध्द चला। जामवंत को जब श्रीकृष्ण के भीतर श्रीराम के दर्शन हुए तब जामंवत ने अपनी पुत्री जामवन्ती का विवाह श्री कृष्ण द्वारा स्थापित शिवलिंग ( रिचेश्वर महादेव मंदिर नांदिया ) की शाक्शी में करवाया। युद्ध मे जाम्बवन्त ने यग्यकूप नामक राक्षस का वध किया था। हनुमान की माता अंजना ने जाम्बवन्त को अपना बड़ा भ्राता माना था जिससे वह शिवान्श हनुमान के मामा बन गये।
रायसेन जिले में स्थित जामगड नाम का एक गांव है माना जाता है की यहां स्थित गुफा ही जामवंत जी की गुफा है
पौराणिक कथा
[संपादित करें]जांबवंत जी का जन्म ब्रह्मा जी से ही हुआ था उनके पत्नी का नाम जयवंती था। यह जब जवान थे, तब भगवन त्रिविक्रम वामन जी का अवतार हुआ। तब भगवन बलि के पास तीन पग भिक्षा मांगने गए और बलि तैयार भी हो गया, भगवान ने अपना स्वरुप बढ़ाया और भगवान ने देख़ते ही देखते दो पग से ही पूरा ब्रह्मण्ड नाप लिआ अब भगवान ने बलि को बांधने लगे तब जामवंत जी ने बलि को बांधते हुए प्रभु की सात प्रदिक्षणा कर ली और तब तक प्रभु पूरा बलि को पूरा बांध भी नहीं पाए थे। जब सुग्रीव जी, बलि के डर से ऋषिमुख गिरी पहाड़ पर था तब भी जामवंत जी उनके साथ थे। अब उनके ज्ञान के बारे में बात बता दू की जब राम जी बाली को मारने जाने वाले थे तब भी जामवंत जी ने बताया था की इन सात पेड़ो को एक बाण से भेदेगा वही बाली को मारेगा और ऐसा ही हुआ। एक कथा यह भी हे जब हनुमान जी लंका को जाने वे थे तब भी वह जामवंत जी की सलाह लेकर गए थे। अब उनके बल की बात जब भगवान राम ने रावण क मारा तो जामवन्तजी ने भगवान से ये वर माँगा की मुझे युद्ध में ललकारने वाला कोई हो तब भगवान ने कहा की द्वापर में मैं ही तुम से युद्ध करूंगा और ऐसा ही हुआ। जामवंत जी ने रामायण काल में श्री हनुमान जी को उनकी शक्तियों का याद दिलाई थी क्योंकि भगवान इंद्र के द्वारा हनुमान जी को श्राप मिला था कि वह अपनी शक्तियों को भूल जाएंगे तब सीता की खोज के दौरान हनुमान जी को लंका तक जाने का रास्ता मिला था जो कि 100 योजन दूर था हनुमान जी अपनी शक्तियों के बारे में नहीं जानते थे तब जामवंत जी ने ही उनको अपनी शक्तियों के बारे में याद दिलाया था|
.