प्लेटो
व्यक्तिगत जानकारी | |
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जन्म | 428/427 or 424/423 ईसा पूर्व एथेंस, यूनान |
मृत्यु | 348/347 ईसा पूर्व(उम्र ल. 80) एथेंस,यूनान |
वृत्तिक जानकारी | |
मुख्य कृतीयाँ | |
युग | प्राचीन यूनानी दर्शन |
क्षेत्र | पाश्चात्य दर्शन |
विचार सम्प्रदाय (स्कूल) | प्लेटोवाद |
राष्ट्रीयता | यूनानी |
मुख्य विचार | तत्त्वमीमांसा ज्ञानमीमांसा राजनीतिक दर्शन , सैन्यवाद |
प्रमुख विचार | प्रत्यय सिद्धांत गुफा की रूपक कथा प्लेटोनीय प्रत्ययवाद प्लेटोनीय यथार्थवाद मुख्य सद्गुण शुभ का प्रत्यय आत्मा के भाग प्लेटोनीय प्रेम प्लेटोनीय ठोस अटलांटिस |
प्रभावित
लगभग सारा पाश्चात्य दर्शन जो इनके बाद आया।
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प्लेटो (यूनानी: Πλάτων, प्लातोन्; ४२८/४२७ या ४२४/४२३ ईसापूर्व - ३४८/३४७ ईसापूर्व), या अफ़्लातून (अरबी أفلاطون से व्यूत्पत्तित) , एथेन्स में जन्मा प्राचीन यूनान के श्रेण्य काल का प्रसिद्ध दार्शनिक था। एथेन्स मे ही उसने अकादमी ( या अकादेमिया, Ἀκαδήμεια) नामक दार्शनिक विद्यापीठ की शुरुआत की जहाँ उसने उन दार्शनिक विचारों के समुच्च्य को पढ़ाया जिसे तत्पश्चात प्लेटोवाद के रूप में जाना जाने लगा। वह सुकरात का शिष्य तथा अरस्तू का गुरू था। इन तीन दार्शनिकों की त्रयी ने ही पश्चिमी संस्कृति का दार्शनिक आधार तैयार किया। प्लेटो एक कृतकनाम था, जो संभवतः उनके कुश्ती कोच द्वारा उन्हें दिये गए उपनाम से उत्पत्तित था - कथित तौर पर उनकी शारीरिक व्यापकता का संदर्भ में। सिनोप के डायोजनीज द्वारा उद्धृत मिलिटस के अलेक्जेंडर के अनुसार उनका वास्तविक नाम अरिस्तोक्लेस था,अर्थात् जो दीमोस कोलीटस ( एथेंस का एक जिला ) के अरिस्तोन का पुत्र था।[1]यूरोप में ध्वनियों के वर्गीकरण का श्रेय प्लेटो को ही है। [2]
प्लेटो दर्शनशास्त्र में लिखित संवाद और द्वंद्वात्मक रूपों के प्रर्वतक थे । उन्होंने उन समस्याओं को उठाया जो बाद में सैद्धांतिक दर्शन और व्यावहारिक दर्शन दोनों के सभी प्रमुख क्षेत्र बन गए । उनका सबसे प्रसिद्ध योगदान प्रत्ययों का सिद्धांत है , जिसकी व्याख्या उस समस्या के समाधान को आगे बढ़ाने के रूप में की गई है जिसे अब सामान्यों की समस्या के रूप में जाना जाता है। उनका नाम प्लेटोनीय प्रेम और प्लेटोनीय ठोस की भी नामराशि है ।
आमतौर पर माना जाता है कि उनके अपने स्वयं के सबसे निर्णायक दार्शनिक प्रभाव सुकरात के साथ-साथ पूर्व-सुकरातिक पाइथागोरस, हेराक्लिटस और पारमेनिदीज़ के भी थे , हालांकि उनके पूर्ववर्तियों के कुछ काम अभी भी मौजूद हैं और आज हम इन लोगों के बारे में जो कुछ भी जानते हैं वह प्लेटो से प्राप्त होता है। [a]
अपने शिक्षक, सुकरात और अपने छात्र, अरस्तू के साथ, प्लेटो दर्शन के इतिहास में एक केंद्रीय व्यक्ति हैं ।[b] अपने लगभग सभी समकालीनों के कार्यों के विपरीत, माना जाता है कि प्लेटो का संपूर्ण कार्य 2,400 वर्षों से अधिक समय तक बरकरार रहा है।[6] यद्यपि उनकी लोकप्रियता में उतार-चढ़ाव आया है, प्लेटो के कार्यों को लगातार पढ़ा और अध्ययन किया गया है। नवप्लेटोवाद के माध्यम से प्लेटो ने ईसाई और इस्लामी दर्शन (उदाहरण के लिए अल-फ़राबी के माध्यम से ) दोनों को बहुत प्रभावित किया।[7] आधुनिक समय में, अल्फ्रेड नॉर्थ व्हाइटहेड ने प्रसिद्ध रूप से कहा कि: "यूरोपीय दार्शनिक परंपरा का सबसे विश्वसनीय सामान्य चरित्रांकन यह है कि इसमें प्लेटो की ओर पादटीकाओं की एक श्रृंखला है।" [8]
जीवनी
[संपादित करें]प्लेटो का जन्म एथेंस के समीपवर्ती ईजिना नामक द्वीप में हुआ था। उसका परिवार सामन्त वर्ग से था। उसके पिता 'अरिस्टोन' तथा माता 'पेरिक्टोन' इतिहास प्रसिद्ध कुलीन नागरिक थे। 404 ई. पू. में प्लेटो सुकरात का शिष्य बना तथा सुकरात के जीवन के अंतिम क्षणों तक उनका शिष्य बना रहा। सुकरात की मृत्यु के बाद प्रजातंत्र के प्रति प्लेटो को घृणा हो गई। उसने मेगोरा, मिस्र, साएरीन, इटली और सिसली आदि देशों की यात्रा की तथा अन्त में एथेन्स लौट कर अकादमी की स्थापना की। प्लेटो इस अकादमी का अन्त तक प्रधान आचार्य बना रहा।
[1] सुव्यवस्थित धर्म की स्थापना पाश्चात्य जगत में सर्वप्रथम सुव्यवस्थित धर्म को जन्म देने वाला प्लेटो ही है। प्लेटो ने अपने पूर्ववर्ती सभी दार्शनिकों के विचार का अध्ययन कर सभी में से उत्तम विचारों का पर्याप्त संचय किया, उदाहरणार्थ- 'माइलेशियन का द्रव्य', 'पाइथागोरस का स्वरूप', 'हेरेक्लाइटस का परिणाम', 'पार्मेनाइडीज का परम सत्य', 'जेनो का द्वन्द्वात्मक तर्क' तथा 'सुकरात के प्रत्ययवाद' आदि उसके दर्शन के प्रमुख स्रोत थे। प्लेटो का मत
प्लेटो के समय में कवि को समाज में आदरणीय स्थान प्राप्त था। उसके समय में कवि को उपदेशक, मार्गदर्शक तथा संस्कृति का रक्षक माना जाता था। प्लेटो के शिष्य का नाम अरस्तू था। प्लेटो का जीवनकाल 427 ई.पू. से 347 ई.पू. माना जाता है। उसका मत था कि "कविता जगत की अनुकृति है, जगत स्वयं अनुकृति है; अतः कविता सत्य से दोगुनी दूर है। वह भावों को उद्वेलित कर व्यक्ति को कुमार्गगामी बनाती है। अत: कविता अनुपयोगी है एवं कवि का महत्त्व एक मोची से भी कम है।" रचनाएँ
प्लेटो की प्रमुख कृतियों में उसके संवाद का नाम विशेष उल्लेखनीय है। प्लेटो ने 35 संवादों की रचना की है। उसके संवादों को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- सुकरातकालीन संवाद - इसमें सुकरात की मृत्यु से लेकर मेगारा पहुंचने तक की रचनाएं हैं। इनमें प्रमुख हैं- हिप्पीयस माइनर, ऐपोलॉजी, क्रीटो, प्रोटागोरस आदि।
- यात्रीकालीन संवाद - इन संवादों पर सुकरात के साथ-साथ 'इलियाई मत' का भी कुछ प्रभाव है। इस काल के संवाद हैं- क्लाइसिस, क्रेटिलस, जॉजियस इत्यादि।
- प्रौढ़कालीन संवाद - इस काल के संवादों में विज्ञानवाद की स्थापना मुख्य विषय है। इस काल के संवाद हैं- सिम्पोजियम, फिलेबु्रस, ट्रिमेर्यास, रिपब्लिक और फीडो आदि।[1]
प्लेटो की रचनाओं में 'द रिपब्लिक', 'द स्टैट्समैन', 'द लाग', 'इयोन', 'सिम्पोजियम' आदि प्रमुख हैं।
काव्य के महत्त्व की स्वीकार्यता
[संपादित करें]प्लेटो काव्य के महत्व को उसी सीमा तक स्वीकार करता है, जहां तक वह गणराज्य के नागरिकों में सत्य, सदाचार की भावना को प्रतिष्ठित करने में सहायक हो। प्लेटो के अनुसार "मानव के व्यक्तित्व के तीन आंतरिक तत्त्व होते हैं-
- बौद्धिक
- ऊर्जस्वी
- सतृष्ण
काव्य विरोधी होने के बावजूद प्लेटो ने वीर पुरुषों के गुणों को उभारकर प्रस्तुत किए जाने वाले तथा देवताओं के स्तोत्र वाले काव्य को महत्त्वपूर्ण एवं उचित माना है। प्लेटो के काव्य विचार
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "Plato FAQ: Plato's real name". www.plato-dialogues.org.
- ↑ भाषा विज्ञान, डा० भोलानाथ तिवारी, किताब महल, दिल्ली, पन्द्रहवाँ संस्करण- १९८१, पृष्ठ ४८१
- ↑ Brickhouse & Smith.
- ↑ Kraut 2013
- ↑ "Plato and Aristotle: How Do They Differ?". Britannica। "Plato (c. 428–c. 348 BCE) and Aristotle (384–322 BCE) are generally regarded as the two greatest figures of Western philosophy".
- ↑ Cooper, John M.; Hutchinson, D.S., eds. (1997): "Introduction."
- ↑ Cooper 1997, पृ॰ vii.
- ↑ Whitehead 1978, पृ॰ 39.
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
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