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सप्ताह की पुस्तक
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रामनाम मोहनदास करमचंद गाँधी के राम नाम से संबंधित आलेखों, विचारों एवं पत्रों का संग्रह है जिसका पहला संस्करण अहमदाबाद के नवजीवन प्रकाशन मंदिर द्वारा १९४९ ई. में प्रकाशित किया गया था।

"छह-सात सालकी अुम्रसे लेकर १६ वर्ष तक विद्याध्ययन किया, परन्तु स्कूलमे मुझे कही धर्म-शिक्षा नहीं मिली। जो चीज शिक्षकोके पाससे सहज ही मिलनी चाहिये, वह न मिली। फिर भी वायुमडलमे से तो कुछ न कुछ धर्म-प्रेरणा मिला ही करती थी। यहा धर्मका व्यापक अर्थ करना चाहिये। धर्मसे मेरा अभिप्राय है आत्म-भानसे, आत्म-ज्ञानसे।
वैष्णव सप्रदायमे जन्म होनेके कारण बार-बार वैष्णव मदिर (हवेली) जाना होता था। परन्तु अुसके प्रति श्रद्धा न अुत्पन्न हुअी। मन्दिरका वैभव मुझे पसन्द न आया। मदिरोमे होनेवाले अनाचारोकी बाते सुन-सुनकर मेरा मन अुनके सम्बन्धमे अुदासीन हो गया। वहासे मुझे कोअी लाभ न मिला।
परन्तु जो चीज मुझे अिस मन्दिरसे न मिली, वह अपनी धायके पाससे मिल गयी। वह हमारे कुटुम्बमे अेक पुरानी नौकरानी थी। अुसका प्रेम मुझे आज भी याद आता है। मैं पहले कह चुका हूं कि मै भूत-प्रेत आदिसे डरा करता था। अिस रम्भाने मुझे बताया कि अिसकी दवा रामनाम है। किन्तु रामनामकी अपेक्षा रम्भा पर मेरी अधिक श्रद्धा थी। अिसलिअे बचपनमे मैने भूत-प्रेतादिसे बचनेके लिअे रामनामका जप शुरू किया। यह सिलसिला यो बहुत दिन तक जारी न रहा, परन्तु जो बीजारोपण बचपनमे हुआ, वह व्यर्थ न गया। रामनाम जो आज मेरे लिअे अेक अमोघ शक्ति हो गया है, अुसका कारण अुस रम्भाबाअीका बोया हुआ बीज ही है।..."(पूरा पढ़ें)


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स्त्रियों की पराधीनता जॉन स्टुअर्ट मिल की कृति "THE SUBJECTION OF WOMEN" का शिवनारायण द्विवेदी द्वारा किया गया हिंदी अनुवाद है। इसका प्रकाशन "हरिदास एण्ड कम्पनी", (कलकत्ता) द्वारा १८१७ ई॰ में किया गया।

"विश्व-विजयी सम्राट् नैपोलियन ने एक अवसर पर कहा था कि, "जो कुछ प्राचीनता की ओट में आ जाता है, लोग उसे अन्याय होने पर भी न्याय ही कहा करते हैं," यह बात मुर्दा रीति-रिवाजों और आचार-विचारों के लिए अक्षरशः सत्य है। जो जाति सुधार की धारा से दूर रहती है उसकी निर्बलता उसे मौत की ओर ही घसीटती है। संसार में कोई समय ऐसा नहीं आता जब मनुष्य अपनी दशा समान ही रख सके; या तो उसे संसार के प्रवाह में पड़ कर आगे बढ़ना होगा और या आगे बढ़ने वालों की ठोकरों से कुचल कर मौत का निवाला बनना होगा। यह प्रकृति का नियम है कि, विश्व में योग्यतम की जीत होगी; और अयोग्य केवल इस श्रेणी वाले व्यक्तियों की दया पर जीवित रहेंगे।"...(पूरा पढ़ें)


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सहकार्य

रचनाकार
रचनाकार

चतुरसेन शास्त्री (26 अगस्त 1891 — 2 फ़रवरी 1960) हिंदी भाषा के उपन्यासकार थे। विकिस्रोत पर उपलब्ध उनकी रचनाएँ:

  1. आग और धुआं, औपनिवेशिक दौर के भारत के इतिहास पर आधारित उपन्यास
  2. वैशाली की नगरवधू, आम्रपाली के जीवन पर आधारित उपन्यास
  3. देवांगना, आस्था और प्रेम का धार्मिक कट्टरता और घृणा पर विजय का उपन्यास
  4. धर्म के नाम पर, धर्म के नाम पर की जाने वाली कुरीतियों पर प्रहार करता निबंध-संग्रह
  5. मेरी प्रिय कहानियाँ, कहानी संग्रह
रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रबीन्द्रनाथ ठाकुर या रबीन्द्रनाथ टैगोर (7 मई 1861 — 7 अगस्त 1941) नोबल पुरस्कार विजेता बाँग्ला कवि, उपन्यासकार, निबंधकार, दार्शनिक और संगीतकार हैं। विकिस्रोत पर उपलब्ध इनकी रचनाएँ:

  1. स्वदेश (1914), निबंध संग्रह
  2. राजा और प्रजा (1919), निबंध संग्रह
  3. विचित्र-प्रबन्ध (1924), निबंध संग्रह
  4. दो बहनें (1952), हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा अनूदित उपन्यास।

आज का पाठ

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श्री विष्णु नारायण भातखण्डे आधुनिक काल के संगीत जगत की एक महत्वपूर्ण विभूति हैं। उनका जीवन परिचय वसंत द्वारा रचित संगीत विशारद पुस्तक के सङ्गीत प्रचार का आधुनिक काल नामक अध्याय में संकलित है। इसका प्रकाशन १९५४ ई॰ में प्रभूलाल गर्ग, हाथरस द्वारा किया गया।

"श्री विष्णु नारायण भातखण्डे का जन्म बम्बई प्रांत के बालकेश्वर नामक स्थान में १० अगस्त १८६० ई॰ को हुआ। इन्होंने १८८३ में बी॰ ए॰ और १८६० में एल-एल॰ बी॰ की परीक्षा पास की। इनकी लगन आरम्भ से ही सङ्गीत की ओर थी। १९०४ में आपकी ऐतिहासिक सङ्गीत यात्रा प्रारम्भ हुई, जिसमें आपने भारत के सैकड़ों स्थानों का भ्रमण करके सङ्गीत सम्बन्धी साहित्य की खोज की। बड़े-बड़े गायकों का सङ्गीत सुना और उनकी स्वरलिपियाँ तैयार करके "क्रमिक पुस्तक मालिका" में प्रकाशित कराईं, जिसके ६ भाग हैं। थ्योरी (शास्त्रीय) ज्ञान के लिये आपने हिन्दुस्थानी सङ्गीत पद्धति के ४ भाग मराठी भाषा में लिखे। संस्कृत भाषा में भी आपने लक्ष्यसङ्गीत और "अभिनव राग मंजरी" नामक पुस्तकें लिखकर प्राचीन सङ्गीत की विशेषताओं एवं उसमें फैली हुई भ्रान्तियों पर प्रकाश डाला। श्री भातखण्डे जी ने अपना शुद्ध थाट बिलावल मानकर थाट पद्धति स्वीकार करते हुए १० थाटों में बहुत से रागों का वर्गीकरण किया।..."(पूरा पढ़ें)

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