चर
प्रकाशितकोशों से अर्थ
[सम्पादन]शब्दसागर
[सम्पादन]चर ^१ संज्ञा पुं॰ [सं॰]
१. राजा की ओर से नियुक्त किया हुआ वह मनुष्य जिसका काम प्रकाश या गुप्त रूप से अपने तथा पराए राज्यों की भीतरी दशा का पता लगाना हो । गूढ पुरुष । उ॰—पठए अवध चतुर चर चारी ।—तुलसी (शब्द॰) ।
२. किसी विशेष कार्य के लिये कहीं भेजा हुआ आदमी । दूत । कासिद ।
३. वह जो चले । जैसे,—अनुचर, खेचर निशिचर ।
४. ज्योतिष में देशांतर जिसकी सहायता दिनमान निकालने में ली जाती है ।
५. खंजन पक्षी ।
६. कौडी । कपर्दिका ।
७. मंगल । भौम ।
८. पास से खेला जानेवाला एक प्रकार का जूआ ।
९. नदियों के किनारे या संगमस्थान पर की वह गीली भूसि जो नदी के साथ बहकर आई हुई मिट्टी के जमने से बनती है ।
१०. दलदल । कीचड़ ।
११. नदियों के बीच में बालू का बना हुआ टापू ।
चर ^२ संज्ञा पुं॰ [हिं॰]
१. छिछला पानी ।—(लश॰) ।
२. नदी का तट ।—(लश॰) ।
३. नाव या जहाज में एक मूढे़ अर्थात् आड़ी लगी हुई लकड़ी के बाहर की ओर निकले हुए भाग मे दूसरे मूढे़ के बीच का स्थान ।—(लश॰) ।
चर ^३ वि॰ [सं॰]
१. आपसे आप चलनेवाला । जंगम । जैसे,—चर जीव, चराचर ।
२. एक स्थान पर न ठहरनेवाला । अस्थिर । जैसे,—चर राणि । चर नक्षत्र ।
३. खानेवाला । आहार करनेवाला ।
चर ^४ संज्ञा [अनु॰] कागज, कपड़े आदि के फटने का शब्द । विशेष—खट, पट आदि शब्दों के समान इसका प्रयोग भी 'से' विभक्ति के साथ ही क्रि॰ वि॰ वत् होता है अतः इसका लिंगविचार व्यर्थ है ।