हिंदू धर्म में कई देवी देवताएं हैं, जिनकी आप पूजा करते है. पूजा के अंत में आरती करने का विधान भी है. माना जाता है कि पूजा को पूर्णता देने के लिए के लिए आरती की जाती है. मंदिरों में आरती करने के दौरान, ढोल, नगाड़े, घड़ियाल भी बजाए जाते हैं. आपको ंबता दें कि आरती शब्द संस्कृत से लिया गया है. संस्कृत में आरती को 'आर्तिका' कहते हैं.
आजतक वेबसाइट पर आपको सभी प्रमुख आरतियों का संग्रह मिलेगा. यहां आप अपने इष्ट देवता की आरती का स्मरण कर सकते हैं.
गणेशजी की आरती
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
एक दंत दयावंत,
चार भुजा धारी ।
माथे सिंदूर सोहे,
मूसे की सवारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
पान चढ़े फल चढ़े,
और चढ़े मेवा ।
लड्डुअन का भोग लगे,
संत करें सेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
अंधन को आंख देत,
कोढ़िन को काया ।
बांझन को पुत्र देत,
निर्धन को माया ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
'सूर' श्याम शरण आए,
सफल कीजे सेवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
दीनन की लाज रखो,
शंभु सुतकारी ।
कामना को पूर्ण करो,
जाऊं बलिहारी ॥
जय गणेश जय गणेश,
जय गणेश देवा ।
माता जाकी पार्वती,
पिता महादेवा ॥
हनुमान जी की आरती
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
जाके बल से गिरवर काँपे ।
रोग-दोष जाके निकट न झाँके ॥
अंजनि पुत्र महा बलदाई ।
संतन के प्रभु सदा सहाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
दे वीरा रघुनाथ पठाए ।
लंका जारि सिया सुधि लाये ॥
लंका सो कोट समुद्र सी खाई ।
जात पवनसुत बार न लाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
लंका जारि असुर संहारे ।
सियाराम जी के काज सँवारे ॥
लक्ष्मण मुर्छित पड़े सकारे ।
लाये संजिवन प्राण उबारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
पैठि पताल तोरि जमकारे ।
अहिरावण की भुजा उखारे ॥
बाईं भुजा असुर दल मारे ।
दाहिने भुजा संतजन तारे ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
सुर-नर-मुनि जन आरती उतरें ।
जय जय जय हनुमान उचारें ॥
कंचन थार कपूर लौ छाई ।
आरती करत अंजना माई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ॥
जो हनुमानजी की आरती गावे ।
बसहिं बैकुंठ परम पद पावे ॥
लंक विध्वंस किये रघुराई ।
तुलसीदास स्वामी कीर्ति गाई ॥
आरती कीजै हनुमान लला की ।
दुष्ट दलन रघुनाथ कला की ॥
शिव जी की आरती
ॐ जय शिव ओंकारा स्वामी जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे ।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥
॥ ॐ जय शिव ओंकारा ॥
कृष्ण जी की आरती
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
गले में बैजंती माला,
बजावै मुरली मधुर बाला ।
श्रवण में कुण्डल झलकाला,
नंद के आनंद नंदलाला ।
गगन सम अंग कांति काली,
राधिका चमक रही आली ।
लतन में ठाढ़े बनमाली
भ्रमर सी अलक,
कस्तूरी तिलक,
चंद्र सी झलक,
ललित छवि श्यामा प्यारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
कनकमय मोर मुकुट बिलसै,
देवता दरसन को तरसैं ।
गगन सों सुमन रासि बरसै ।
बजे मुरचंग,
मधुर मिरदंग,
ग्वालिन संग,
अतुल रति गोप कुमारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
जहां ते प्रकट भई गंगा,
सकल मन हारिणि श्री गंगा ।
स्मरन ते होत मोह भंगा
बसी शिव सीस,
जटा के बीच,
हरै अघ कीच,
चरन छवि श्रीबनवारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
चमकती उज्ज्वल तट रेनू,
बज रही वृंदावन बेनू ।
चहुं दिसि गोपि ग्वाल धेनू
हंसत मृदु मंद,
चांदनी चंद,
कटत भव फंद,
टेर सुन दीन दुखारी की,
श्री गिरिधर कृष्णमुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
आरती कुंजबिहारी की,
श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की ॥
मां दुर्गा आरती (Maa Durga Aarti)
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत,
हरि ब्रह्मा शिवरी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
मांग सिंदूर विराजत,
टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना,
चंद्रवदन नीको ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कनक समान कलेवर,
रक्ताम्बर राजै ।
रक्तपुष्प गल माला,
कंठन पर साजै ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
केहरि वाहन राजत,
खड्ग खप्पर धारी ।
सुर-नर-मुनिजन सेवत,
तिनके दुखहारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कानन कुण्डल शोभित,
नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर,
सम राजत ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
शुंभ-निशुंभ बिदारे,
महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना,
निशदिन मदमाती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चण्ड-मुण्ड संहारे,
शोणित बीज हरे ।
मधु-कैटभ दोउ मारे,
सुर भयहीन करे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
ब्रह्माणी, रूद्राणी,
तुम कमला रानी ।
आगम निगम बखानी,
तुम शिव पटरानी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
चौंसठ योगिनी मंगल गावत,
नृत्य करत भैरों ।
बाजत ताल मृदंगा,
अरू बाजत डमरू ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
तुम ही जग की माता,
तुम ही हो भरता,
भक्तन की दुख हरता ।
सुख संपति करता ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
भुजा चार अति शोभित,
वर मुद्रा धारी । [खड्ग खप्पर धारी]
मनवांछित फल पावत,
सेवत नर नारी ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
कंचन थाल विराजत,
अगर कपूर बाती ।
श्रीमालकेतु में राजत,
कोटि रतन ज्योती ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
श्री अंबेजी की आरति,
जो कोइ नर गावे ।
कहत शिवानंद स्वामी,
सुख-संपति पावे ॥
ॐ जय अम्बे गौरी..॥
जय अम्बे गौरी,
मैया जय श्यामा गौरी ।
भगवान विष्णु जी की आरती
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।
तुम बिन और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥
Bhairava ji ki Aarti: भैरव जी भगवान शिव के अवतार हैं, जो उनके क्रोध के स्वरूप में प्रकट हुए थे. वह भगवान शिव के भैरव रूप के 64 अवतारों में से एक हैं. बटुक भैरव को भगवान शिव के बाल रूप के रूप में भी जाना जाता है, जो उनकी शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है. तो आइए पढ़ते हैं बटुक भैरव की आरती.
Ambe Mata Aarti: माता अंबे हिंदू धर्म में एक पवित्र देवी हैं, जो माता दुर्गा का ही एक रूप है. वह शक्ति और सृजन की देवी मानी जाती हैं और उनकी पूजा करने से भक्तों को सुख, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है. तो आइए पढ़ते हैं माता अंबे की आरती.
Vishwakarma Aarti: भगवान विश्वकर्मा को दुनिया का पहला इंजीनियर एवं वास्तुकार माना जाता है. विश्वकर्मा ने सृष्टि की रचना में भगवान ब्रह्मा की सहायता की थी. माना जाता है कि विश्वकर्मा जी ने ही देवताओं के घर, नगर, अस्त्र-शस्त्र आदि का निर्माण किया था.
Parshuram ji ki Aarti: भगवान श्री परशुराम जी पाठ पढ़ने से बुद्धि से अज्ञान के अंधियारे मिट जाते हैं. इसे रोजाना पढ़ने से यश की प्राप्ति होती है. इसके साथ ही इंसान तेजस्वी भी बनता है. भगवान परशुराम शौर्य की मूर्ति हैं. तो चलिए भगवान परशुराम की इस आरती को पढ़ें.
Dhanvantari Ji Ki Aarti: श्री धन्वन्तरि हिन्दू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार हैं. इनका पृथ्वी लोक में अवतरण समुद्र मन्थन के समय हुआ था. त्रयोदशी को श्री धन्वन्तरि का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था. विशेषतौर पर भगवान धन्वन्तरि का अवतरण और पूजा धनदेरस के दिन किया जाता है. तो आइए सुनते हैं भगवान धन्वन्तरि की आरती.
Shri Chirtagupt Aarti: चित्रगुप्त हिंदुओं के प्रमुख देवता माने जाते हैं. पुराणों के मुताबिक, वो अपने दरबार में मनुष्यों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा कर न्याय करते थे. व्यापारियों के लिए यह नए साल की शुरुआत मानी जाती है. इस दिन नए बहियों के लिए श्री चित्रगुप्त की आरती भी की जाती है.
Shri Govardhan Aarti: गोवर्धन महाराज की पूजा उत्तर भारत में, खासकर ब्रज भूमि मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल और बरसाना में इसका एक खास महत्व है, जिसका कारण है, भगवान श्री कृष्ण. तो चलिए सुनते हैं महाराज गोवर्धन की आरती.
Narsimha Ji ki Aarti: अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने नृसिंह अवतार लिया था. इनका प्राकट्य खंबे से गोधूली वेला के समय हुआ था. भगवान नृसिंह, श्रीहरि विष्णु के उग्र और शक्तिशाली अवतार माने जाते हैं. इनकी आरती करने से सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं.
Shri Ramayan Ji ki Aarti: श्री रामायणजी की आरती बहुत ही प्रसिद्ध मानी जाती है. रामायण सबसे प्रसिद्ध हिन्दु महाकाव्य है जिसका पूजन अधिकांश हिन्दुओं द्वारा किया जाता है. साथ ही श्री रामायण जी आरती का पाठ भी करना चाहिए.
Lakshmi Narayan Aarti: सनातन धर्म में गुरुवार का दिन भगवान विष्णु को समर्पित है. इस दिन विवाहित महिलाएं भगवान विष्णु के लिए व्रत रखती हैं. साथ ही कुंडली में गुरु ग्रह की मजबूती के लिए इस दिन व्रत किया जाता है.
Jagdish Ji ki Aarti: ऊं जय जगदीश हरे, भगवान जगदीश यानी भगवान विष्णु की सबसे प्रसिद्ध आरती है. भगवान जगदीश को सत्यनारायण के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रसिद्ध आरती भगवान जगदीश से संबंधित अधिकांश अवसरों पर गाई जाती है.
Gau Mata Aarti: गौ माता की उपासना करने से व्यक्ति को जीवन में सफलता, सुख और मोक्ष की प्राप्ति होती है. दरअसल, गौ माता में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास माना जाता है. तो आइए पढ़ते हैं गौ माता की आरती.
Tulsi Mata Aarti: तुलसी जी को भगवती लक्ष्मी जी का अवतार कहा जाता है. भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय होने के कारण इन्हें भक्ति प्रदायिनी भी माना गया है. तुलसी जी के नजदीक बैठकर हर दिन उनकी आरती का पाठ करना चाहिए.
Ahoi Mata Aarti: अहोई अष्टमी का पर्व कार्तिक मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को पड़ता है. इस दिन माता अहोई की पूजा की जाती है. इस दिन सभी माताएं अहोई माता से अपने पुत्रों की दीर्घायु और उनके खुशहाल जीवन के लिए व्रत का पालन करती है. तो चलिए पढ़ते हैं अहोई माता की आरती.
Saraswati Mata Aarti: सरस्वती को ज्ञान की देवी कहा जाता है क्योंकि वे पूरे संसार को ज्ञान और बुद्धि देती हैं. वे मन से मोह रूपी अंधकार को दूर करती हैं और गलत रास्ते पर चल रहे लोगों को प्रगति का रास्ता दिखाती हैं. मां सरस्वती की आरती श्रद्धा के साथ गाने पर कल्याण होता है.
Parvati Mata Ji ki Aarti: देवी पार्वती को भगवान शिव की शक्ति के रूप में जाना जाता है. देवी पार्वती के कई नाम भी हैं जैसे ललिता, उमा, गौरी, काली, दुर्गा, हेमवती आदि. इसके अलावा ब्रह्मांड की मां के रूप में, पार्वती को अंबा और अंबिका के रूप में भी जाना जाता है.
Vaishno Mata Aarti: हमारे धर्मशास्त्रों में कलयुग में लोगों के कष्ट हरने के लिए देवी-देवताओं के नामजप के साथ-साथ कथाएं भी बेहद उपयोगी बताई गई हैं. सनातन धर्म को मानने वाले माता वैष्णो देवी की महिमा गाते नहीं थकते हैं. तो आइए सुनते हैं माता वैष्णो की आरती.
Shiv Aarti: सोमवार का दिन भगवान शिव और माता पार्वती का माना जाता है. कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती विवाह हुआ था. इस पवित्र दिन पर भक्त व्रत-उपवास करते हैं और शिव शंभू के साथ देवी पार्वती की पूजा अर्चना करते हैं.
Surya Aarti: हिंदू धर्म के अनुसार भगवान सूर्य देव एक मात्र ऐसे देव हैं जो साक्षात दिखाई पड़ते हैं. रोज सुबह सूर्य देव को अर्घ्य देने से सफलता, शांति और शक्ति की प्राप्ति होती है. रोज सुबह सूर्य देव की किरणें धरती पर पड़ती हैं तो संसार में उजाला फैल जाता है.
Shani dev Aarti: मान्यता है कि किसी भी काम में अड़चन आ रही हो तो शनिदेव की आराधना करनी चाहिए. शनिदेव प्रसन्न होते हैं तो बिगड़े हुए काम बन जाते हैं और सफलता मिलती है. शनिदेव मनुष्य के कर्म और फल से संबंध रखते हैं.
Vaibhav Lakshmi Aarti: देवी लक्ष्मी की कृपा पाने का सबसे आसान तरीका है, वैभव लक्ष्मी की उपासना. यह मां लक्ष्मी के आठ स्वरूपों में से ही एक है. ज्योतिषी कहते हैं कि वैभव लक्ष्मी का व्रत रखने से जीवन की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं. धन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है.