काशी में देव दीपावली, 40 देशों के मेहमान आएंगे:एक रात स्टे का 25 से 80 हजार तक खर्च: 39 साल पहले हुई थी शुरुआत

वाराणसी1 दिन पहलेलेखक: अनुज तिवारी
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देव दिवाली... मतलब देवताओं के धरती पर उतरकर दीपावली मनाने का उत्सव। काशी में 15 नवंबर को देव दीपावली मनाई जाएगी। इसे देखने के लिए 40 देशों के मेहमान काशी आ रहे हैं। करीब 15 लाख भी टूरिस्ट भी आएंगे, जो आयोजन का गवाह बनेंगे

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इस आयोजन की शुरुआत 80 दीयों से हुई, जब काशी के सभी घाट पर 1-1 दीया जलता था। अब यह आयोजन 20 लाख दीयों तक पहुंच गया है।

इस बार प्रशासन ने 17 लाख दीये जलाने का टारगेट रखा है। संत रविदास घाट से लेकर आदिकेशव घाट तक और वरुणा नदी के तट से लेकर मठों-मंदिरों तक कुल 25 लाख दीपक जगमगाएंगे।

1 रात स्टे के लिए खर्च करने होंगे 80 हजार सोमवार को देव दीपावली का रिहर्सल किया। लेजर लाइट एंड साउंड शो हुआ। देव दीपावली के चलते घाट के पास के होटल 1 रात स्टे के लिए 50 से 80 हजार रुपए तक चार्ज कर रहे हैं। सामान्य दिनों में यही कमरे 20-25 हजार में मिल जाते थे।

इस बार आयोजन में PM मोदी वर्चुअली शामिल होंगे। योगी आदित्यनाथ और उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ अस्सी घाट पर मौजूद रहेंगे। बात तैयारियों की करें तो घाट पर रंगाई-पुताई हो रही है, गंगा आरती स्थल को फूलों से सजा दिया गया है। गंगा घाट लाइट से सजे हुए हैं।

यह तस्वीर यूपी टूरिज्म ने सोमवार को जारी की। इसमें 2023 की देव दीपावली की भव्यता दिखाई गई है।
यह तस्वीर यूपी टूरिज्म ने सोमवार को जारी की। इसमें 2023 की देव दीपावली की भव्यता दिखाई गई है।

काशी विश्वनाथ की थीम पर दीयों की झांकी देव दीपावली का मुख्य सेंटर गंगा घाट होता है। पंचगंगा घाट पर दीप जलाने के साथ आयोजन की शुरुआत होगी। सबसे ज्यादा भव्यता दशाश्वमेध घाट पर दिखाई देगी। यहां भव्य गंगा आरती की तैयारी चल रही है।

गंगा के 84 घाट पर अलग-अलग समुदाय के लोग दीये जलाएंगे। पांडे घाट पर काशी विश्वनाथ धाम की थीम पर दीयों की झांकी सजाई जाएगी। सिर्फ गंगा घाट पर 2 लाख दीये जलाए जाएंगे। इसमें करीब 50 हजार दीये गाय के गोबर के बने हैं।

दक्षिण भारतीय समुदाय बनाएगा भव्य रंगोली देव दीपावली पर दक्षिण भारतीय समुदाय 20 हजार दीप का दान करेगा। भव्य रंगोली तैयार होगी। विशेष पूजा-अर्चना में बंगाली समाज की महिलाएं घाट पर दिखेंगी। केदारघाट पर इसकी खूबसूरती दिखेगी।

अस्सी घाट पर विशेष गंगा आरती की तैयारी है। इसकी जिम्मेदारी जय मां गंगा सेवा समिति को मिली है।

सोमवार शाम को देव दीपावली का रिहर्सल हुआ। यूपी टूरिज्म ने इसकी तस्वीरें जारी की है।
सोमवार शाम को देव दीपावली का रिहर्सल हुआ। यूपी टूरिज्म ने इसकी तस्वीरें जारी की है।

दशाश्वमेघ घाट पर शौर्य के 25 वर्ष थीम पर होगी गंगा की महाआरती दशाश्वमेध घाट की प्रसिद्ध गंगा आरती इस साल 'शौर्य के 25 वर्ष' की थीम पर मनाई जाएगी। इसके लिए गंगा सेवा निधि की तैयारियां अपने अंतिम चरण में हैं। देव दीपावली की आरती में 21 अर्चक और 42 कन्याएं रिद्धि-सिद्धि के रूप में रहेंगी। मां भगवती की इस महाआरती में आरती के बाद सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित होंगे।

लेजर लाइट शो में दिखेगी शिव महिमा बाबा विश्वनाथ धाम के गंगा द्वार पर इस बार शिव महिमा को लेजर लाइट के जरिए से दिखाया जाएगा। गुजरात की एक कंपनी इसकी तैयारी कर रही है।

ग्रीन एरियल फायर क्रैकर्स शो करने वाली कंपनी एक्सिस कम्युनिकेशन के CEO मनोज गौतम ने कहा- रेत पर करीब 1.5 किलोमीटर के स्ट्रेच पर आतिशबाजी की जाएगी। आतिशबाजी शो हर-हर शंभू , शिव तांडव आदि भजनों के नौ से 10 ट्रैक पर होगा।

तीसरा प्रमुख आयोजन वाराणसी के चेतसिंह घाट पर होगा, जहां पर शिव महिमा और गंगा अवतरण की तैयारी को दिखाया जाएगा। इसमें भगवान शिव द्वारा महिषासुर का किस तरह से वध किया गया, इसकी भी पूरी कहानी लेजर शो में दिखाई जाएगी। लखनऊ की कंपनी ने इसकी तैयारी पूरी कर ली है।

काशी के 80 घाटों पर दीयों को सजाने की तैयारी हो चुकी है। दीये 15 नवंबर को ही रखे जाएंगे।
काशी के 80 घाटों पर दीयों को सजाने की तैयारी हो चुकी है। दीये 15 नवंबर को ही रखे जाएंगे।

अब पुराणों में देव दीपावली की मान्यता जानिए... काशी की देव दीपावली इसलिए खास है, क्योंकि पुराणों में भी इसका जिक्र है। मान्यता है कि देव दीपावली पर काशी में उत्तरवाहिनी गंगा के अर्धचंद्राकार 84 से ज्यादा घाटों पर देवता स्वर्ग से आते हैं और दीपावली मनाते हैं।

पुराणों के अनुसार, देव दीपावली की कहानी

1- जब शिव ने त्रिपुरासुर का वध किया महाभारत के कर्णपर्व में त्रिपुरासुर वध की कथा है। इसके मुताबिक, तरकाक्ष, कमलाक्ष और विद्युन्माली नामक तीन राक्षस भाई त्रिपुरासुर राक्षस कहलाते थे। उन्होंने सोने, चांदी और लोहे के तीन नगर बनवाए थे। ये तीन नगर त्रिपुर कहलाते। ब्रह्मा के आशीर्वाद से त्रिपुरासुर इतने शक्तिशाली थे कि उनके अत्याचार से देवता भी त्रस्त हो गए थे। सभी ने भगवान शिव से त्रिपुरासुर के अंत की विनती की। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर का वध कर उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाई।

फिर भगवान शिव त्रिपुरारि या त्रिपुरांतक कहलाए। इससे खुश होकर देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप जलाकर दीपोत्सव मनाया था, इसके बाद सारे देवी-देवता काशी की धरती पर आए। भव्य दिवाली मनाई।

पुराणों, धर्मशास्त्रों, धर्म सिंधु आदि ग्रंथों में इसका उल्लेख त्रिपुरोत्सव के नाम से होता है। दिवाली पर केवल मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। मगर, मान्यता है कि देव दीपावली पर साक्षात सभी देवतागण काशी में उतरते हैं और जो भी दीपक जलाता है, उसे अपना आशीर्वचन देते हैं। तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनाई जाने लगी।

त्रिपुरासुर का वध करते हुए भगवान शिव की यह मूर्ति कर्नाटक के हलेबिंदु मंदिर के प्रांगण में है।
त्रिपुरासुर का वध करते हुए भगवान शिव की यह मूर्ति कर्नाटक के हलेबिंदु मंदिर के प्रांगण में है।

2- जब राजा दिवोदास ने काशी में देवताओं के प्रवेश को प्रतिबंधित कर दिया स्कंद पुराण के काशीखंडम के मुताबिक, काशी में देव दीपावली मनाने के संबंध में मान्यता है कि राजा दिवोदास ने अपने राज्य काशी में देवताओं का प्रवेश प्रतिबंधित कर दिया था। कार्तिक पूर्णिमा के दिन भेष बदलकर भगवान शिव ने काशी के पंचगंगा घाट पर आकर गंगा स्नान किया। यह बात राजा दिवोदास को पता लगी तो उन्होंने देवताओं के प्रवेश के प्रतिबंध को समाप्त कर दिया था। इससे देवता खुश हुए और उन्होंने काशी में प्रवेश कर दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।

पंचगंगा घाट पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान विशेष पुण्यकारी माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां पांच नदियों का संगम है।
पंचगंगा घाट पर कार्तिक पूर्णिमा के दिन स्नान विशेष पुण्यकारी माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां पांच नदियों का संगम है।

इतिहास में देव दीपावली की कहानी काशी के पंचगंगा घाट को लेकर मान्यता है कि यहां गंगा, यमुना, सरस्वती, धूतपापा और किरणा नदियों का संगम है। कार्तिक पूर्णिमा के दिन पंचगंगा घाट पर स्नान विशेष पुण्यदायी माना जाता है। काशी के ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, यहां देव दीपावली की शुरुआत भगवान शिव की कथा से जुड़ी है। मगर, घाटों पर दीप प्रज्वलित होने की कथा पंचगंगा घाट से जुड़ी है।

1785 में आदि शंकराचार्य से प्रेरणा लेकर श्री काशी विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराने वाली महारानी अहिल्याबाई होलकर ने पंचगंगा घाट पर पत्थर से बने हजारा स्तंभ (एक हजार एक दीपों का स्तंभ) पर दीप जलाकर काशी में देव दीपावली उत्सव की शुरुआत की थी। इसे भव्य बनाने में काशी नरेश महाराज विभूति नारायण सिंह ने मदद की।

गंगा किनारे पंचगंगा घाट पर स्थापित यह हजारा दीप स्तंभ है। इसकी स्थापना महारानी अहिल्याबाई होलकर ने कराई थी। प्रत्येक वर्ष देव दीपावली की शुरुआत यहां दीपक जलाने के साथ ही होती है।
गंगा किनारे पंचगंगा घाट पर स्थापित यह हजारा दीप स्तंभ है। इसकी स्थापना महारानी अहिल्याबाई होलकर ने कराई थी। प्रत्येक वर्ष देव दीपावली की शुरुआत यहां दीपक जलाने के साथ ही होती है।

39 साल पहले क्रिकेट खेलने वाले लड़कों ने मनाई थी देव दीपावली काशी में देव दीपावली के मौजूदा स्वरूप का इतिहास महज 39 साल पुराना है। पहली बार 1985 में घाट पर क्रिकेट खेलने वाले लड़कों ने श्रद्धालुओं से दीये और तेल के पैसे मांगकर पंचगंगा घाट पर 5 दीये जलाए थे। इसके बाद 1986 में बनारस के 5 घाटों पंचगंगा, बालाजी, सिंधिया घाट, मान मंदिर और अहिल्या बाई घाट पर देव दीपावली मनाई गई।

1987 में कुछ अन्य लोग भी जुड़े और दशाश्वमेध घाट को मिलाकर 15 घाटों तक देव दीपावली मनाई जाने लगी। आयोजन के चौथे साल अस्सी घाट पर भी देव दीपावली मनाई जाने लगी। पांचवें साल 27 घाट और अब 85 से ज्यादा गंगा घाटों पर देव दीपावली महा उत्सव के रूप में मनाई जाती है।

केंद्रीय देव दीपावली महासमिति के अध्यक्ष पं. वागीश दत्त शास्त्री के अनुसार, नेपाल से आकर बनारस में बसे पं. नारायण गुरु ने साल 1984 में श्रद्धा भाव से किरणा-गंगा संगम स्थल पर 5 दीये जलाए थे। अगले साल घर-घर से तेल मांग कर उन्होंने पंचगंगा घाट से हजारा दीपोत्सव (1001 दीप जलाकर) मनाया। इस साल 39 साल बाद 15 नवंबर को काशी के गंगा घाटों पर देव दीपावली पहले से भी ज्यादा भव्य और दिव्य रूप में मनाई जाएगी।

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