अभंग
अभंग विट्ठल या विठोबा की स्तुति में गाये गये छन्दों को कहते हैं।
महाराष्ट्र के वारकरी सम्प्रदाय के संतों ने 13वीं सदी के दौरान समाज में अलख जगाने के जो छंद क्षेत्रीय भाषा में गाये, उन्हें अभंग के नाम से जाना जाता है। यह एक प्रकार से हिंदी के छंद की तरह है। मोटे और पर छंद के उलट, अभंग में मात्राओं के स्थान पर अक्षरों की संख्या गिनी जाती है। अक्षरों की संख्या का पालन कठोरता से नहीं किया जाता बल्कि, यों कहना सही होगा कि उच्चारण की सुविधानुसार अक्षरों की संख्या कम-ज्यादा हो सकती है।
अभंग क्या है ?
[संपादित करें]अभंग और भजन पर्यायवाची हैं। अभंग शब्द दो शब्दों "अ" और "भंग" से मिलकर बना है। भंग शब्द का अर्थ है टूटा हुआ और इसके आगे अ का अर्थ है अटूट या अटूट। अब अटूट या अखण्ड क्या है? इसे कई तरीकों से देखा जा सकता है:
- अभंगों में वर्णित विषय भगवान है - सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी भगवान - कोई है जो पूरे ब्रह्मांड पर निर्बाध और अनवरत कृपा बरसाता है |
- इन अभंगों में दिए गए भक्ति सिद्धांत, सार्वभौमिक सत्य अटूट हैं। ये सनातन सत्य हैं और इस दुनिया के अंत और उसके बाद भी रहेंगे।
- अभंग हर युग में प्रासंगिक हैं। चाहे वे किसी भी काल में गाए गए हों, उनकी प्रासंगिकता बरकरार रहती है। जब भी उन्हें गाया, सुना, पढ़ा और पढ़ा जाएगा, वे सभी उम्र के भक्तों को प्रेरित करते रहेंगे।
- अभंग जो खुशी और खुशी देते हैं वह अटूट है। ये अभंग आपको स्थायी और निरंतर खुशी की ओर ले जाते हैं। मन खुशियों का भंडार बन जाता है और फिर उस खुशी का कोई अंत नहीं होता।[1]
अभंग दो प्रकार के होते हैं - चार चरणों के और दो चरणों के.चार चरणों वाले अभंग की प्रथम तीन चरणों में 6-6 अक्षर होते हैं जबकि अंतिम चरण में चार अक्षर. इसके साथ ही दूसरे और तीसरे चरणों में यमक का पुट होता है। रही बात चौथा चरण की तो वह अभंग को पूर्णता प्रदान करता है-
काय करूँ आता, धरुनिया भीड़
नि:शंक हे तोंड, वाजविले।।
नव्हे जगी कोणी, मुक्तियांचा जाण
सार्थक लाजुण, नव्हे हित।।
दो चरणों वाले अभंग के प्रत्येक चरण में 8-8 अक्षर होते हैं और अंत में यमक होता है-
- जे का रंजले गांजले। त्यासी म्हणे जो आपुले।।
पुढे गेले हरीचे दास ।
[संपादित करें]त्यांची आस आम्हांसी ॥१॥
[संपादित करें]त्याची मार्गीं आम्हीं जाऊं ।
[संपादित करें]वाचे गाऊं विठ्ठला ॥२॥
[संपादित करें]संसाराचा न करुं धंदा ।
[संपादित करें]हरुषें सदा नाम गाऊं ॥३॥
[संपादित करें]एका जनार्दनीं डोळे ।
[संपादित करें]पहाती पाउलें कोंवळें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]- तुकाराम के अभंग (DV-TTYogesh फॉण्ट में)
- मराठी अभंग का संग्रह Archived 2020-08-09 at the वेबैक मशीन (युनिकोड फॉन्ट)
यह लेख एक आधार है। जानकारी जोड़कर इसे बढ़ाने में विकिपीडिया की मदद करें। |