भारत के महाराज्यपाल
वायसराय और
भारत के गवर्नर-जनरल English :Viceroy and Governor-General, India | |
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शैली | His Excellency (मान्यवर) |
आवास |
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नियुक्तिकर्ता |
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गठन | 22 अप्रैल 1834 (इंडिया) 20 अक्टूबर 1773 (फोर्ट विलियम) |
प्रथम धारक | लॉर्ड विलियम बैन्टिक (इंडिया) वारेन हेस्टिंग्स (फोर्ट विलियम) |
अन्तिम धारक |
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समाप्ति | 26 जनवरी 1950 |
भारत के महाराज्यपाल या गवर्नर-जनरल (1858 - 1947) वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल अर्थात राजप्रतिनिधि एवं महाराज्यपाल) भारत में ब्रिटिश राज का अध्यक्ष और भारतीय स्वतंत्रता उपरांत भारत में, ब्रिटिश सम्प्रभु का प्रतिनिधि होता था। इनका कार्यालय सन १७७३ में बनाया गया था, जिसे फोर्ट विलियम की प्रेसीडेंसी का गवर्नर-जनरल के अधीन रखा गया था। इस कार्यालय का फोर्ट विलियम पर सीधा नियंत्रण था, एवं अन्य ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के अधिकारियों का पर्यवेक्षण करता था। सम्पूर्ण ब्रिटिश भारत पर पूर्ण अधिकार १८३३ में दिये गये और तब से यह भारत के गवर्नर-जनरल बन गये।
१८५८ में भारत ब्रिटिश शासन की अधीन आ गया था। गवर्नर-जनरल की उपाधि उसके भारतीय ब्रिटिश प्रांत (पंजाब, बंगाल, बंबई, मद्रास, संयुक्त प्रांत, इत्यादि) और ब्रिटिष भारत, शब्द स्वतंत्रता पूर्व काल के अविभाजित भारत के इन्हीं ब्रिटिश नियंत्रण के प्रांतों के लिये प्रयोग होता है।
वैसे अधिकांश ब्रिटिश भारत, ब्रिटिश सरकार द्वारा सीधे शासित ना होकर, उसके अधीन रहे शासकों द्वारा ही शासित होता था। भारत में सामंतों और रजवाड़ों को गवर्नर-जनरल के ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि होने की भूमिका को दर्शित करने हेतु, सन 1858 से वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल ऑफ इंडिया (जिसे लघुरूप में वाइसरॉय कहा जाता था) प्रयोग हुई। वाइसरॊय उपाधि 1947 में स्वतंत्रता उपरांत लुप्त हो गयी, लेकिन गवर्नर-जनरल का कार्यालय सन 1950 में, भारतीय गणतंत्रता तक अस्तित्व में रहा।
1858 तक, गवर्नर-जनरल को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों द्वारा चयनित किया जाता था और वह उन्हीं को जवाबदेह होता था। बाद में वह महाराजा द्वारा ब्रिटिश सरकार, भारत राज्य सचिव, ब्रिटिश कैबिनेट; इन सभी की राय से चयन होने लगा। १९४७ के बाद, सम्राट ने उसकी नियुक्ति जारी रखी, लेकिन भारतीय मंत्रियों की राय से, ना कि ब्रिटिश मंत्रियों की सलाह से।
गवर्नर-जनरल पांच वर्ष के कार्यकाल के लिये होता था। उसे पहले भी हटाया जा सकता था। इस काल के पूर्ण होने पर, एक अस्थायी गवर्नर-जनरल बनाया जाता था। जब तक कि नया गवर्नर-जनरल पदभार ग्रहण ना कर ले। अस्थायी गवर्नर-जनरल को प्रायः प्रान्तीय गवर्नरों में से चुना जाता था।
इतिहास
[संपादित करें]वार्रन हास्टिंग्स, भारत के प्रथम गवर्नर-जनरल फोर्ट विलियम के( 1774-1785) भारत के कई भागों पर ईस्ट इंडिया कंपनी का राज था, जो नाममात्र को मुगल बादशाह के प्रतिनिधि के तौर पर राज करती थी।1773 में, कंपनी में भ्रष्टाचार के चलते, ब्रिटिश सरकार ने, रेगुलेशन एक्ट अधिनियम के तहत, भारत का प्रशासन आंशिक रूप से अपने नियंत्रण में ले लिया था। बंगाल में फोर्ट विलियम की प्रेसेडेंसी के शासन हेतु एक गवर्नर-जनरल, तथा एक परिषद का गठन किया गया। प्रथम गवर्नर-जनरल एवं परिषद का नाम अधिनियम में लिखित है। उनके उत्तराधिकारी ईस्ट इंडिया कंपनी के निदेशकों द्वारा चयनित होना तय हुआ था। इस अधिनियक्म के अनुसार गवर्नर-जनरल तथा परिषद का पांच वर्षीय कार्यकाल निश्चित किया गया था। परंतु शासन को उन्हें मध्यावधि में हटाने का पूर्णाधिकार था।
१८३३ के चार्टर एक्ट अधिनियम ने फोर्ट विलियम के गवर्नर-जनरल एवं परिषद को बदल कर भारत का गवर्नर-जनरल एवं परिषद बना दिया। लेकिन उन्हें चयन करने की सामर्थ्य निदेशकों को ही रखी, केवल उसको शासन के अनुमोदन का विषय बना दिया।
१८५७ के संग्राम के बाद, ईस्ट इंडिया कंपनी समाप्त कर दी गयी और भारत ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया। गवर्न्मेंट ऑफ इंडिया एक्ट १८५८ अधिनियम के द्वारा, गवर्नर-जनरल को नियुक्त करने का धिकार दिया गया। भारत और पाकिस्तान को १९४७ में स्वतंत्रता मिली, परन्तु गवर्नर-जनरल फिर भी जारी रहे, जब तक कि दोनों देशों के संविधान नहीं बन गये। माउंटबैटन कुछ समय भारत का गवर्नर-जनरल बना रहा। लेकिन दोनों देशों के अपने गवर्नर-जनरल बने। बाद में भारत १९५० में धर्म-निरपेक्ष गणतंत्र बना और १९५६ में पाकिस्तान इस्लामी गणराज्य बना।
गवर्नर-जनरल के प्रकार्य
[संपादित करें]गवर्नर-जनरल को पहले पहल, केवल बंगाल प्रेसीडेंसी पर ही अधिकार था। रेगुलेटिंग अधिनियम द्वारा, उन्हें विदेश संबंध एवं रक्षा संबंधी कई अतिरिक्त अधिकार दिये गये। ईस्ट इंडिया कंपनी की अन्य प्रेसीडेंसियों जैसे मद्रास प्रेसीडेंसी, बंबई प्रेसीडेंसी, एवं बेंगकुलु प्रेसीडेंसी (बैनकूलन) को, बिना फोर्ट विलियम के गवर्नर-जनरल एवं परिषद की अग्रिम अनुमोदन के; ना तो कोई युद्ध की घोषणा के अधिकार थे, ना ही किसी भारतीय रजवाड़ॊं से शांति संबंध बनाने के अधिकार दिये गये थे।
गवर्नर-जनरल की विदेश मामलों के अधिकार इंडिया एक्ट १७८४ के द्वारा बढ़ाये गये। इस अधिनियम के तहत, कंपनी के अन्य गवर्नर नातो कोई युद्ध घोषित कर सकते थे, ना ही शांति प्रक्रिया, ना ही कोई संधि प्रस्ताव या अनुमति किसी भी भारतीय राजाओं से, जब तक कि गवर्नर-जनरल या कम्पनी के निदेशकों से अनुमति या आदेश ना मिला हो।
हालांकि गवर्नर-जनरल विदेश नीतियों का संचालक बन गया, परन्तु वह भारत का पूर्ण अध्यक्ष नहीं था। यह स्थिति केवल चार्टर एक्ट १८३३ के तहत आयी, जिसने उसे पूरे ब्रिटिश भारत पर नागरिक एवं सैन्य शासन के पूर्ण अधीक्षण, निर्देशन, एवं नियंत्रण के अधिकार दिये। इस अधिनियम से उसे वैधानिक अधिकार भी मिले।
१८५८ उपरांत, गवर्नर-जनरल भारत का मुख्य प्रशासक और ब्रिटिश शासन का प्रतिनिधि बन गया। भारत को कई प्रांतों में बांटा गया, प्रत्येक के एक गवर्नर या प्रशासक नियुक्त हुए। गवर्नर ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त हुए थे, जिनके वे सीधे जवाबदेही थे। लेफ्टिनेंट गवर्नर, चीफ कमिश्नर (मुख्य आयुक्त) एवं प्रशासक (एदमिनिस्ट्रेटर) नियुक्त हुए, जो कि गवर्नर के अधीन कार्यरत थे।
गवर्नर-जनरल सबसे शक्तिशाली राज्य भी स्वयं देखता था, जैसे:-हैदराबाद के निजाम, मैसूर के महाराजा, ग्वालियर के सिंधिया महाराजा, बड़ौदा के गायक्वाड महाराजा, जम्मू एवं कश्मीर के महाराजा, इत्यादि। शेशः रजवाड़े या तो राजपूताना एजेंसी]] एवं सेंट्रल इंडिया एजेंसी देखती थी (जो कि गवर्नर-जनरल के प्रतिनिधि की अध्यक्षता में होता था), या प्रान्तीय शासन।
एक बार भारत के स्वतंत्रता प्राप्त करने के उपरांत, भारतीय मंत्रीमण्डल (कैबिनेट) के दिन पर दिन अधिकार प्राप्त करते रहने पर, गवर्नर-जनरल की भूमिका केवल औपचारिक रह गयी थी। राष्ट्र के गणतंत्र बनने पर, गैर-कर्यपालक भारत के राष्ट्रपति ने वही प्रकार्य जारी रखे।
परिषद
[संपादित करें]गवर्नर-जनरल को अपने वैधानिक एवं कार्यपालक अधिकारों के प्रयोग हेतु, सर्वदा ही परिषद की सलाह मिली। गवर्नर-जनरल को, कईप्रकार्यों के दौरान, गवर्नर-जनरल इन कॉन्सिल कहा जाता था।
- रेगुलेटिंग एक्ट १७७३ अधिनियम ने ईस्ट इंडिया कम्पनी के निदेशकों को चुनावों द्वारा, चार सलाहकार नियुक्त कराये। गवर्नर-जनरल के पास इन सलाहकारों सहित, एक मत (वोट) का अधिकार था, जिसके साथ ही उसे समान मत संख्या की स्थिति में उठे विवाद को सुलझाने हेतु, एक अतिरिक्त मत दिया गया था। परिषद का निर्णय गवर्नर-जनरल को मान्य होना था।
- १७८४ में, परिषद को तीन सदस्य तक सीमित कर दिया गया, जबकि गवर्नर-जनरल के पास अभी भी दो वोट थे। १७८६ में, गवर्नर-जनरल के अधिकार और बढ़ाये गये, औइर परिषद के निर्णय अब उसके लिये बाध्य नहीं थे।
- चार्टर एक्ट १८३३ से परिषद के ढांचे में और बदलाव आये। यह प्रथम अधिनियम था, जिसके तहत गवर्नर-जनरल की कार्यपलक एवं वैधानिक उत्तरदायित्वों में अन्तर बताया गया। इसके तहत परिषद में चार सदस्य होने चाहिये थे, जो कि निदेशकगण चुनते थे। प्रथम तीन सदस्य प्रत्येक अवसर पर भाग लेते थे, परन्तु चौथे सदस्य को केवल विधान के बहस के दौरान ही बैठने की अनुमति थी।
- १८५८ में निदेशकगण के अधिकार घटा दिये गये। उनका परिषद के सदस्य चुनने का अधिकार बंद हो गय। इसके स्थान पर, चौथे सदस्य, जिसे केवल वैधानिक बैठक में मत देने का अधिकार था, उसे शासक ही चुनते थे और अन्य तीन सदस्य भारत के राज्य सचिव चुनते थे।
- इंडियन काउंसिल एक्ट १८६१ अधिनियम द्वारा परिषद के संयोजन में कई बदलाव किये गये। तीन सदस्य भारत के राज्य सचिव द्वारा नियुक्त होना तय हुआ और दो सदस्य मुख्य शासक द्वारा (१८६९ में पांचों सदस्यों के चुनाव का अधिकार ब्रिटिश सम्राट के पास चला गया)। गवर्नर-जनरल को अतिरिक्त छः से बारह सदस्य (१८९२ में छः से दर हुए और १९०९ में दस से बारह)। भारतीय सचिव द्वारा चुने गये पांच लोग कार्यपालक विभाग के मुख्य होते थे, जबकि गवर्नर-जनरल द्वारा चयनित सदस्य बहस में और विधान में मत देने का कार्य करते थे।
- १९१९ में, राज्य परिषद एवं वैधानिक सभा के संयोजन से बना भारतीय विधान अस्तित्व में आया, जिसने गवर्नर-जनरल की परिषद के वैधानिक प्रकार्यों का कार्य संभाला। गवर्नर-जनरल को विधान के ऊपर महत्वपूर्ण अधिकार था। वह विधान की सहमति के बिना भी आर्थिक व्यय को अधिकृत कर सकता था। यह केवल भूमि (राजनैतिक), रक्षा आदि उद्देश्यों हेतु, एवं आपातकाल में सभी निर्णयों में, सीमित था। यदि उसने संस्तुति की है, लेकिन केवल एक ही चैम्बर ने कोई बिल पास किया है, तो भी वह दूसरे चैमब्र के आपत्ति करने पर भी उस बिल को अध्यादेश बना कर जारी कर सकता था। विधान को विदेश मामलों एवं रक्षा में कोई अधिकार नहीं था। राज्य परिषद का अध्यक्ष, गवर्नर-जनरल द्वारा नियुक्त किया जाता था। विधान सभा अपना अध्यक्ष चुनती थी, लेकिन इसका चुनाव, गवर्नर-जनरल की सहमति से ही होता था।
शैली एवं उपाधि
[संपादित करें]गवर्नर-जनरल (जब वे वाइसरॉय थे १८५८ से १९४७ तक के समय समेत) एक्सीलेंसी की शैली प्रयोग किया करते थे, एवं भारत में, अन्य सभी सरकारी अधिकारियों पर वर्चस्व रखते थे। उन्हें योर एक्सीलेंसी से सम्बोधित किया जाता था, तथा उनके लिये हिज़ एक्सीलेंसी प्रयोग किया जाता था। १८५८-१९४७ के काल में, गवर्नर-जनरल को फ्रेंच भाषा से रॉय यानि राजा और वाइस अंग्रेज़ी से, यानि उप, मिलाकर वाइसरॉय कहा जाता था। यह उपाधी सर्वप्रथम रानी विक्टोरिया ने विस्कस कैनिंग के नियुक्ति के समय की थी।[1] इनकी पत्नियों को वाइसराइन कहा जाता था। उनके लिये हर एक्सीलेंसी, एवं उन्हें योर एक्सीलेंसी कहकर सम्बोधित किया जाता था। परन्तु ब्रिटेन के महाराजा के भारत में होने पर, यह उपाधियां प्रयोग नहीं होती थीं। [2]
सन १८६१ में, जब ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ इंडिया, वाइसरॉय को ग्रैंड मास्टर एक्स ऑफीशियो (पदेन या पदानुसार) घोषित किया गया। गवर्नर-जनरल को १८७७ में, पदेन ग्रैंड मास्टर ऑफ ऑर्डर ऑफ इंडियन एम्पायर भी घोषित किया गया। [3]
अधिकांश गवर्नर-जनरल एवं वाइसरॉय पीयर थे। जो नहीं थे, उनमें सर जॉन शोर बैरोनत, एवं कॉर्ड विलियम बैंटिक लॉर्ड थे, क्योंकि वे एक ड्यूक के पुत्र थे। केवल प्रथम और अंतिम गवर्नर-जनरल वार्रन हास्टिंग्स तथा चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य और कुछ अस्थायी गवर्नर-जनरल, को कोई विशेष उपाधि नहीं थी।
ध्वज
[संपादित करें]१८८५ के लगभग, गवर्नर-जनरल को संघीय ध्वज फहराने की अनुमति दे दी गयी जिसमें बीच में स्टार ऑफ इंडिया के ऊपर एक मुकुट लगा हुआ था। यह ध्वज, गवर्नर-जनरल का निजी ध्वज नहीं था, यह गवर्नर, लेफ्टिनेंट गवर्नर, चीफ कमिश्नर (मुख्य आयुक्त) एवं भारत में अन्य ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा भी प्रयोग किया जाता था। समुद्री यात्रा के दौरान, केवल गवर्नर-जनरल ही इस ध्वज कि मुख्य ध्वज स्तंभ पर फहराता था, अन्य उसे गौण स्तंभों से ही फहराते थे।
१९४७ से १९५० तक, भारत के गवर्नर-जनरल, एक शाही ढाल (एक मुकुट पर सिंह आसीन) सहित एक नीला ध्वज प्रयोग किया करते थे। इस चिन्ह के नीचे शब्द “भारत” सुनहरे अक्षरों में अंकित होता था। यही नमूना कई अन्य गवर्नर-जनरल द्वारा भी प्रयोग किया गया। यह किसी गवर्नर-जनरल का अंतिम निजी ध्वज था।
आवास
[संपादित करें]फोर्ट विलियम के गवर्नर-जनरल बैल्वेडेर हाउस, कलकत्ता में आरम्भिक उन्नीसवीं शताब्दी तक रहा करते थे। फिर गवर्न्मेंट हाउस का निर्माण हुआ। १८५४ में, बंगाल के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने वहां अपना आवास बनाया। अब बेलवेडेर हाउस में भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय है।
लॉर्ड वैलेस्ली, जिन्होंने कहा था, कि भारत को एक महल से शासित होना चाहिये, ना कि एक डाक बंगले से; ने एक एक वृहत हवेली बनवायी, जिसे गवर्न्मेंट हाउस कहा गया। यह १७९९-१८०३ के बीच निर्मित हुआ। यह हवेली सन १९१२ तक प्रयोग में रही, जब तक की राजधानी कलकत्ता में रही। फिर राजधानी दिल्ली स्थानांतरित की गयी। तब बंगाल के लेफ्टि. गवर्नर को गवर्नर का पूर्णाधिकार दिया गया और गवर्न्मेंट हाउस में आवास दिया गया। अब यही भवन, वर्तमान पश्चिम बंगाल का राज्यपाल आवास है। इसे अब इसी नाम के हिन्दी रूपान्तर, राज भवन कहा जाता है।
जब राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया, वाइसरॉय ने नव-निर्मित सर एड्विन लूट्यन्स द्वारा अभिकल्पित, वाइसरॉय हाउस में आवास किया। हालांकि निर्मान १९१२ में आरम्भ हुआ, परन्तु वह १९२९ तक भी पूर्ण ना हो सका; और १९३१ तक भी उसका औपचारिक उद्घाटन नहीं सम्पन्न हो पाया। इसाखी अंतिम लागत पाउण्ड ८,७७,००० (आज के अनुसार साढ़े तीन करोड़ पाउण्ड) थी। वर्तमान में, यह आवास, अपने वर्तमान हिन्दी नाम “राष्ट्रपति भवन” से प्रसिद्ध है।
पूरे ब्रिटिश प्रशासन के दौरान, गवर्नर-जनरल शिमला स्थित वाइसरीगल लॉज (देखें “राष्ट्रपति निवास”) में ग्रीष्म ऋतु बिताते थे। पूरी सरकार ग्रीष ऋतु की गर्मी से बचने हेतु, हर वर्ष शिमला जाते थे।
गवर्नर-जनरल की सूची
[संपादित करें]फोर्ट विलियम प्रेसीडेंसी
[संपादित करें]गवर्नर-जनरल
- वार्रन हास्टिंग्स, 20 अक्टूबर 1773–1 फरवरी 1785
- सर जॉन मैक्फर्सन, 1 फरवरी 1785–12 सितंबर 1786, अस्थायी
- कॉर्नवालिस, 12 सितंबर 1786–28 अक्टूबर 1793, पहली बार (1792 से)
- जॉन शोर, 28 अक्टूबर 1793–मार्च 1798
- एल्यूरेड क्लार्क, मार्च 1798–18 मई 1798, अस्थायी
- वैलेस्ली, 18 मई 1798–30 जुलाई 1805 (1799 से, लॉर्ड वैलेस्ली)
- कॉर्नवालिस, 30 जुलाई 1805–5 अक्टूबर 1805, दूसरी बार
- जॉर्ज हिलेरियो बार्लो, 10 अक्टूबर 1805–31 जुलाई 1807, अस्थायी
- मिंटो, 31 जुलाई 1807–4 अक्टूबर 1813
- फ्रांसिस रॉडन हास्टिंग्स, 4 अक्टूबर 1813–9 जनवरी 1823
- जॉन ऐडम, 9 जनवरी 1823–1 अगस्त 1823, अस्थायी
- एम्हर्स्ट, 1 अगस्त 1823–13 मार्च 1828
- विलियम बटर्वर्थ बेले, 13 मार्च 1828–4 जुलाई 1828, अस्थायी
- विलियम बैंटिक 4 जुलाई 1828–22 अप्रैल 1834
भारत के गवर्नर-जनरल
[संपादित करें]- 1834–1858
- विलियम बैन्टिक 22 अप्रैल 1833–20 मार्च 1835, continued
- चार्ल्स मैटकाफ, 20 मार्च 1835–4 मार्च 1836, अस्थायी
- ऑकलैंड, 4 मार्च 1836–28 फरवरी 1842
- ऐलनबरो, 28 फरवरी 1842–जून 1844
- विलियम विबरफोर्स बर्ड, जून 1844–23 जुलाई 1844, अस्थायी
- हैनरी हार्डिंग, 23 जुलाई 1844–12 जनवरी 1848
- डलहौज़ी, 12 जनवरी 1848–28 फरवरी 1856
- कैनिंग, 28 फरवरी 1856–1 नवंबर 1858
भारत के वाइसरॉय एवं गवर्नर-जनरल
[संपादित करें]- 1858–1947
- कैनिंग, 1 नवंबर 1858–21 मार्च 1862,
- एल्गिन, 21 मार्च 1862–20 नवंबर 1863
- रॉबर्ट नैपियर, 21 नवंबर 1863–2 दिसम्बर 1863, अस्थायी
- विलियम डैनिसन, 2 दिसम्बर 1863–12 जनवरी 1864, अस्थायी
- जॉन लॉरेंस, 12 जनवरी 1864–12 जनवरी 1869
- मेयो, 12 जनवरी 1869–8 फरवरी 1872
- जॉन स्ट्रैचे, 9 फरवरी 1872–23 फरवरी 1872, अस्थायी
- नैपियर, 24 फरवरी 1872–3 मई 1872, अस्थायी
- नॉर्थब्रूक, 3 मई 1872–12 अप्रैल 1876
- लिट्टन, 12 अप्रैल 1876–8 जून 1880
- राइपन, 8 जून 1880–13 दिसम्बर 1884
- डफरिन, 13 दिसम्बर 1884–10 दिसम्बर 1888
- लैंस्डाउन, 10 दिसम्बर 1888–11 अक्टूबर 1894
- विक्टर ब्रूस, 11 अक्टूबर 1894–6 जनवरी 1899
- कर्जन, 6 जनवरी 1899–18 नवंबर 1905
- ऐम्प्थिल, 1904,
- मिंटो, 18 नवंबर 1905–23 नवंबर 1910
- हार्डिंग, 23 नवंबर 1910–4 अप्रैल 1916
- चेम्स्फोर्ड, 4 अप्रैल 1916–2 अप्रैल 1921
- रीडिंग 2 अप्रैल 1921–3 अप्रैल 1926
- इर्विन, 3 अप्रैल 1926–18 अप्रैल 1931
- विलिंग्डन, 18 अप्रैल 1931–18 अप्रैल 1936
- विक्टर होप, 18 अप्रैल 1936–1 अक्टूबर 1943
- वेवैल, 1 अक्टूबर 1943–21 फरवरी 1947
- माउंटबैटन, 21 फरवरी 1947–15 अगस्त 1947
भारत के गवर्नर-जनरल
[संपादित करें]- 1947–1950
पाकिस्तान के गवर्नर-जनरल
[संपादित करें]- 1947–1958
- मोहम्मद अली जिन्नाह, 15 अगस्त 1947–11 सितंबर 1948
- ख्वाजा नजीमुद्दीन, 14 सितंबर 1948–17 अक्टूबर 1951
- गुलाम मोहम्मद, 17 अक्टूबर 1951–6 अक्टूबर 1955
- इस्कंदर मिर्जा, 6 अक्टूबर 1955–23 मार्च 1956
अधिचिह्न
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "रानी विक्टोरिया की घोषणा". मूल से 28 सितंबर 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 19 मार्च 2018.
- ↑ Arnold P. Kaminsky, The India Office, 1880–1910 (Greenwood Press, 1986), p. 126.
- ↑ H. Verney Lovett, "The Indian Governments, 1858–1918", The Cambridge History of the British Empire, Volume V: The Indian Empire, 1858–1918 (Cambridge University Press, 1932), p. 226.
- Association of Commonwealth Archivists and Record Managers, (1999). "Government Buildings - India"
- Forrest, G.W., CIE, (editor), Selections from The State Papers of the Governors-General of India - Warren Hastings (2 vols), Blackwell's, Oxford, 1910.
- Encyclopædia Britannica ("British Empire" and "Viceroy"), London, 1911, 11th edition, Cambridge University Press.
- James, Lawrence, Raj: The Making and Unmaking of British India London: Little, Brown & Company, 1997, ISBN 0-316-64072-7
- Keith, A. B. (editor), Speeches and Documents on Indian Policy, 1750–1921,ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 1922.
- Oldenburg, P. (2004). "India." Microsoft Encarta Online Encyclopedia.