सिंचाई
सिंचाई मिट्टी को कृत्रिम रूप से पानी देकर उसमे उपलब्ध जल की मात्रा में वृद्धि करने की क्रिया है और आमतौर पर इसका प्रयोग फसल उगाने के दौरान, शुष्क क्षेत्रों या पर्याप्त वर्षा ना होने की स्थिति में पौधों की जल आवश्यकता पूरी करने के लिए किया जाता है। कृषि के क्षेत्र में इसका प्रयोग इसके अतिरिक्त निम्न कारणें से भी किया जाता है: -
- फसल को पाले से बचाने,[1]
- मिट्टी को सूखकर कठोर (समेकन) बनने से रोकने,[2]
- धान के खेतों में खरपतवार की वृद्धि पर लगाम लगाने, आदि।[3]
जो कृषि अपनी जल आवश्यकताओं के लिए पूरी तरह वर्षा पर निर्भर करती है उसे वर्षा-आधारित कृषि कहते हैं। सिंचाई का अध्ययन अक्सर जल निकासी, जो पानी को प्राकृतिक या कृत्रिम रूप से किसी क्षेत्र की पृष्ठ (सतह) या उपपृष्ट (उपसतह) से हटाने को कहते हैं के साथ किया जाता है।
प्राचीन काल में सिंचाई के विभिन्न साधन
[संपादित करें]सिंचाई का इतिहास बहुत पुराना है। आज सिंचाई के अनेक साधन है।
सिंचाई की विधियो के नाम
[संपादित करें]भारत में सिंचाई की निम्नलिखित विधियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं:-
कटवाँ या तोड़ विधि
[संपादित करें]यह विधि निचली भूमि में धान के खेतो की सिंचाई में प्रयुक्त होती है जबकि इसका प्रयोग कुछ और फसलों में भी किया जाता है। पानी को नाली द्वारा खेत में बिना किसी नियंत्रण के छोड़ा जाता है। यह पूरे खेत में बिना किसी दिशा निर्देश के फैल जाता है। जल के आर्थिक प्रयोग के लिये एक खेत का क्षेत्रफल 0.1 से 0.2 हे
- तोड़ विधि के लाभ
1. इससे समय की बचत होती है। 2. अधिक पानी चाहने वाली फसल के लिए उपयुक्त है।
थाला विधि
[संपादित करें]यह नकबार या क्यारी विधि के समान होता है पर क्यारी विधि में पूरी क्यारी जल से भरी जाती है जबकि इस विधि में जल सिर्फ पेड़ों के चारों तरफ के थालों में डाला जाता है। सामान्यतः ये थाले आकार में गोल होते है कभी-कभी चौकोर भी होते हैं।
जब पेड़ छोटे होते है थाले छोटे होते है और इनका आकार पेड़ों की उम्र के साथ बढ़ता है। ये थाले सिंचाई की नाली से जुड़े रहते हैं।
नकबार या क्यारी विधि
[संपादित करें]यह सतह की सिंचाई विधियों की सबसे आम विधि है। इस विधि में खेत छोटी-छोटी क्यारियों में बांट दिया जाता हैं जिनके चारो तरफ छोटी मेड़ें बना दी जाती है पानी मुख्य नाली से खेत की एक के बाद एक नाली में डाला जाता है खेत की हर नाली क्यारियों की दो पंक्तियों को पानी की पूर्ति करती है। यह विधि उन खेतों में प्रयोग की जाती है जो आकार में बड़े होते है और पूरे खेत का समतलीकरण एक समस्या होता है।
इस स्थिति में खेत को कई पट्टियों में बांट दिया जाता है और इनपट्टियों को मेंड़ द्वारा छोटी-छोटी क्यारियों में बांट लिया जाता है इस विधि का सबसे बड़ालाभ यह है कि इस में पानी पूरे खेत में एक समान तरीके से प्रभावित रूप में डाला जा सकता है। यह पास-पास उगाई जाने वाली फसलों के लिये जैसे मूँगफली, गेहूँ, छोटे खाद्दान्न पारा घास आदि के लिये उपयुक्त विधि है। इसके अवगुण है इसमें मजदूर अधिक लगते हैं,
इस विधि में यंत्र जिन्हें ए.मीटर या एप्लीकेटर कहते हैं के द्वारा जल धीरे-धीरे लगातार बूंद-बूंद करके या छोटे फुहार के रूप में पोधो तक प्लास्टिक की पतली नलियों के माध्यम से पहुँचाया जाता है। यह विधि सिंचाई जल की अत्यंत कमी वाले स्थानो पर प्रयोग की जाती है। मुख्यतः यह नारियल, [(अंगूर)], केला, बेर, नीबू प्रजाति, गन्ना, कपास, मक्का, टमाटर, बैंगन और प्लान्टेशन फसलों में इसका प्रयोग किया जाता है।
बौछारी सिंचाई
[संपादित करें]इस विधि में सोत्र में पानी दबाव के साथ खेत तक ले जाया जाता है और स्वचालित छिड़काव यंत्र द्वारा पूरे खेत में बौछार द्वारा वर्षा की बूंदो की तरह छिड़का जाता है। इसे ओवर हेड सिंचाई भी कहते हैं। कई प्रकार छिड़काव के यंत्र उपलब्ध हैं। सेन्टर पाइवोट सिस्टम सबसे बड़ा छिड़काव सिस्टम है जो एक मशीन द्वारा 100 हेक्टेअर क्षेत्र की सिंचाई कर सकता है।
जल के स्रोत
[संपादित करें]नदी
[संपादित करें]यह जल स्रोत का धरातलीय विधि है। जिसके अंतर्गत सिचाई किया जाता है।
नहर जल परिवहन तथा स्थानान्तरण का मानव-निर्मित संरचना है। नहर शब्द से ऐसे जलमार्ग का बोध होता है, जो प्राकृतिक न होकर, मानवनिर्मित होता है। मुख्यत: इसका प्रयोग खेती के लिये जल को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाने में किया जाता है। सिंचाई में नहरों की भागीदारी 31.1% है।
जलाशय
[संपादित करें]सिंचाई का एक साधन है। यह प्राकृतिक तथा मानव निर्मित दोनों प्रकार के होते हैं।
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Snyder, R. L.; Melo-Abreu, J. P. (2005). "Frost protection: fundamentals, practice, and economics – Volume 1" (PDF). संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन of the संयुक्त राष्ट्र. ISSN: 1684-8241.
- ↑ "Arid environments becoming consolidated". मूल से 25 अप्रैल 2017 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 28 अक्तूबर 2009.
- ↑ Williams, J. F. "Managing Water for Weed Control in Rice". UC Davis, Department of Plant Sciences. मूल से 3 अप्रैल 2007 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2007-03-14. नामालूम प्राचल
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की उपेक्षा की गयी (|author=
सुझावित है) (मदद)