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वैशाली की नगरवधू

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वैशाली की नगरवधू  (1949) 
आचार्य चतुरसेन शास्त्री

दिल्ली: राजपाल एंड सन्ज़, पृष्ठ आवरण-पृष्ठ से – अंतर्वस्तु तक

 
वैशाली की नगरवधू
वैशाली की नगरवधू

(बौद्धकालीन ऐतिहासिक उपन्यास)



आचार्य चतुरसेन




राजपाल

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत


रचनाकाल : 1939-1947




ISBN: 9788170282822

संस्करण : 2015 © श्रीमती कमलकिशोरी चतुरसेन
VAISHALI KI NAGARVADHU (Novel)
by Acharya Chatursen

राजपाल एण्ड सन्ज़
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प्रवचन


अपने जीवन के पूर्वाह्न में—सन् 1909 में, जब भाग्य रुपयों से भरी थैलियां मेरे हाथों में पकड़ाना चाहता था—मैंने कलम पकड़ी। इस बात को आज 40 वर्ष बीत रहे हैं। इस बीच मैंने छोटी- बड़ी लगभग 84 पुस्तकें विविध विषयों पर लिखीं, अथच दस हज़ार से अधिक पृष्ठ विविध सामयिक पत्रिकाओं में लिखे। इस साहित्य-साधना से मैंने पाया कुछ भी नहीं, खोया बहुत-कुछ, कहना चाहिए, सब कुछ–धन, वैभव, आराम और शान्ति। इतना ही नहीं, यौवन और सम्मान भी। इतना मूल्य चुकाकर निरन्तर चालीस वर्षों की अर्जित अपनी सम्पूर्ण साहित्य-सम्पदा को मैं आज प्रसन्नता से रद्द करता हूं; और यह घोषणा करता हूं—कि आज मैं अपनी यह पहली कृति विनयांजलि-सहित आपको भेंट कर रहा हूं।

यह सत्य है कि यह उपन्यास है। परन्तु इससे अधिक सत्य यह है कि यह एक गम्भीर रहस्यपूर्ण संकेत है, जो उस काले पर्दे के प्रति है, जिसकी ओट में आर्यों के धर्म, साहित्य, राजसत्ता और संस्कृति की पराजय और मिश्रित जातियों की प्रगतिशील संस्कृति की विजय सहस्राब्दियों से छिपी हुई है, जिसे सम्भवतः किसी इतिहासकार ने आंख उघाड़कर देखा नहीं है।

मैंने जो चालीस वर्षों से तन-मन-धन से साधित अपनी अमूल्य साहित्य-सम्पदा को प्रसन्नता से रद्द करके इस रचना को अपनी पहली रचना घोषित किया है, सो यह इस रचना के प्रति मात्र मेरी व्यक्तिगत निष्ठा है; परन्तु इस रचना पर गर्व करने का मेरा कोई अधिकार नहीं है। मैं केवल आपसे एक यह अनुरोध करता हूं कि इस रचना को पढ़ते समय उपन्यास के कथानक से पृथक् किसी निगूढ़ तत्त्व को ढूंढ़ निकालने में आप सजग रहें। संभव है, आपका वह सत्य मिल जाए, जिसकी खोज में मुझे आर्य, बौद्ध, जैन और हिन्दुओं के साहित्य का सांस्कृतिक अध्ययन दस वर्ष करना पड़ा है।


ज्ञानधाम
दिल्ली-शाहदरा
1-1-49

—चतुरसेन

अंतर्वस्तु


प्रवचन
प्रवेश
1. धिक्कृत कानून
2. गण–सन्निपात
3. नीलपद्म प्रासाद
4. मंगलपुष्करिणी अभिषेक
5. पहला अतिथि
6. उरुबेला तीर्थ
7. शाक्यपुत्र गौतम
8. कुलपुत्र यश
9. धर्म चक्र–प्रवर्तन
10. वैशाली का स्वर्ग
11. राजगृह
12. रहस्यमयी भेंट
13. बन्दी की मुक्ति
14. राजगृह का वैज्ञानिक
15. मगध महामात्य आर्य वर्षकार
16. आर्या मातंगी
17. महामिलन
18. ज्ञातिपुत्र सिंह
19. मल्ल दम्पती
20. साकेत
21. कोसलेश प्रसेनजित्
22. माण्डव्य उपरिचर

23. जीवक कौमारभृत्य
24. नियुक्त
25. नियुक्त का शुल्क
26. चम्पारण्य में
27. शम्बर असुर की नगरी में
28. कुण्डनी का अभियान
29. असुर भोज
30. मृत्यु-चुम्बन
31. चम्पा में
32. शत्रुपुरी में मित्र
33. पर्शुपुरी का रत्न-विक्रेता
34. असम साहस
35. शंब असुर का साहस
36. गुप्त पत्र
37. आक्रमण
38. मृत्युपाश
39. पलायन
40. चम्पा का पतन
41. वादरायण व्यास
42. सम्मान्य अतिथि
43. गर्भ–गृह में
44. भारी सौदा
45. भविष्य–कथन
46. साम्राज्य
47. दास नहीं, अभिभावक
48. सोम की भाव–धारा

49. मार्ग–बाधा
50. श्रावस्ती
51. वर्षकार का यन्त्र
52. सोण कोटिविंश
53. गृहपति अनाथपिण्डिक
54. मगध–महामात्य की कूटनीति
55. मागध विग्रह
56. नापित–गुरु
57. शालिभद्र
58. सर्वजित् महावीर
59. शालिभद्र का विराग
60. पांचालों की परिषद्
71. द्वन्द्व
72. उद्धार
73. प्रसेनजित् का कौतूहल
74. यज्ञ
75. राजनन्दिनी
76. सेनापति कारायण
77. प्रसेनजित् का निष्कासन
78. बन्धुल का दांव-पेंच
79. कुटिल ब्राह्मण
80. दुःखद अन्त
81. नाउन
82. दीहदन्त का अड्‌डा
83. कोसल–दुर्ग
84. नर्म–साचिव्य

85. कठिन अभियान
86. अभिषेक
87. आत्मदान
88. सहभोग्यमिदं राज्यम्
89. मार्मिक भेंट
90. चिरविदा
91. सुप्रभात
92. मधुपर्व
93. आखेट
93. रंग में भंग
95. साहसी चित्रकार
96. मंजुघोषा का प्रभाव
97. एकान्त वन में
98. अपार्थिव नृत्य
99. पीड़ानन्द
100. अभिन्न हृदय
101. विदा
102. वैशाली की उत्सुकता
104. दस्यु बलभद्र
105. युवराज स्वर्णसेन
106. प्रत्यागत
107. वैशाली में मगध–महामात्य
108. भद्रनन्दिनी
109. नन्दन साहु
110. दक्षिणा-ब्राह्मणा-कुण्डपुर-सन्निवश
111. हरिकेशीबल

112. चाण्डाल मुनि का कोप
113. सन्निपात–भेरी
114. मोहनगृह की मन्त्रणा
115. पारग्रामिक
116. छाया–पुरुष
117. विलय
118. असमंजस
119. देवजुष्ट
120. कीमियागर गौड़पाद
121. अप्रत्याशित
122. प्राणाकर्षण
123. अनागत
124. एकाकी
125. मधुवन में
126. विसर्जन
127. एकान्त पान्थ
128. प्रतीहार का मूलधन
129. प्रतीहार–पत्नी
130. गणदूत
131. जयराज और दौत्य
132. गुह्य निवेदन
133. पलायन
134. घातक द्वन्द्व–युद्ध
135. चण्डभद्रिक
136. दूसरी मोहन–मन्त्रणा
137. युद्ध विभीषिका

138. मागध स्कन्धावार–निवेश
139. प्रयाण
140. शुभ दृष्टि
141. मागध मंत्रणा
142. प्रकाश–युद्ध
143. लघु विमर्श
144. व्यस्त रात्रि
145. अभिसार
146. सांग्रामिक
147. द्विशासन
148. रथ–मुशल–संग्राम
149. कैंकर्य
150. महाशिलाकण्टक विनाशयन्त्र
151. छत्र–भंग
152. आत्मसमर्पण
153. दृग-स्पर्श
154. विराम–सन्धि
155. अश्रु-सम्पदा
156. पिता–पुत्र

यह कार्य भारत में सार्वजनिक डोमेन है क्योंकि यह भारत में निर्मित हुआ है और इसकी कॉपीराइट की अवधि समाप्त हो चुकी है। भारत के कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अनुसार लेखक की मृत्यु के पश्चात् के वर्ष (अर्थात् वर्ष 2024 के अनुसार, 1 जनवरी 1964 से पूर्व के) से गणना करके साठ वर्ष पूर्ण होने पर सभी दस्तावेज सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आ जाते हैं।


यह कार्य संयुक्त राज्य अमेरिका में भी सार्वजनिक डोमेन में है क्योंकि यह भारत में 1996 में सार्वजनिक प्रभावक्षेत्र में आया था और संयुक्त राज्य अमेरिका में इसका कोई कॉपीराइट पंजीकरण नहीं है (यह भारत के वर्ष 1928 में बर्न समझौते में शामिल होने और 17 यूएससी 104ए की महत्त्वपूर्ण तिथि जनवरी 1, 1996 का संयुक्त प्रभाव है।